किराए के बिस्तर और रजाई से कटती है बेघरों की ठंडी रात




पुरानी दिल्ली के जामा मस्जिद के पीछे वाहनों के पुर्जो का एक बड़ा बाजार है, जहां दिन में दुकानें गुलजार रहती हैं वहीं रात में दुकानों के शटर गिरते ही यह स्थान बेघरों के शरणगाह के रूप में तब्दील हो जाता है। ठंड के मौसम में बेघर लोग यहां किराए की रजाई और खाट लेकर किसी तरह रात काटते हैं।

फूल और छोटी-मोटी चीजें बेचकर जीविका चलाने वाला 14 वर्षीय भानू कुमार ठंड का मौसम समाप्त होने का इंतजार कर रहा है, ताकि तोशक और रजाई पर खर्च होने वाला किराये का पैसा बचे और वह उसे मध्य प्रदेश में अपने परिवार को भेज पाए।

दिन में तो तापमान में थोड़ी वृद्धि हुई है, लेकिन रात अभी भी ठंडी है। उत्तर भारत के कुछ इलाकों में बर्फ गिरने के कारण ठंड कुछ बढ़ गया है और हल्की बारिश के कारण इन बेघरों की परेशानी और बढ़ गई है।

भानू ने कहा कि ठंड का मौसम हम लोगों के लिए काफी कठिन होता है। कई बार तो हम लोगों पास खाने और बिस्तर किराए पर लेने के लिए पैसे तक नहीं होते। उसने कहा, "किसी तरह ठंड का मौसम समाप्त हो ताकि रोज बिस्तर और रजाई के किराए पर खर्च होने वाले 10 रुपये बचने शुरू हों।"

दिल्ली में कई सालों से बेघर किराए पर बिस्तर और रजाई लेकर ठंड की रात काटते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के मुताबिक दिल्ली की सड़कों पर करीब 56 हजार बेघर लोग रात बिताते हैं।

कासिम उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से करीब 30 सालों पहले दिल्ली आया था। वह वर्षो से यहां सोने के लिए आया करता है। उसने कहा कि गरीबों के लिए सिर्फ दो ही मौसम होते हैं - जाड़ा और गर्मी। दोनों में परेशानी होती है। लेकिन ठंड का मौसम अधिक परेशानी वाला होता है। गर्मी में तो लोग कहीं भी सो सकते हैं।

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