शास्त्रों में शिव के अनेक कल्याणकारी रूप और नाम की महिमा बताई गई है। शिव ने विषपान किया तो नीलकंठ कहलाए, गंगा को सिर पर धारण किया तो गंगाधर पुकारे गए। भूतों के स्वामी होने से भूतभावन भी कहलाते हैं। कोई उन्हें भोलेनाथ तो कोई देवाधि देव महादेव के नाम से पुकारता है| हिन्दू धर्म में भगवान शिव को मृत्युलोक देवता माने गए हैं। शिव को अनादि, अनंत, अजन्मा माना गया है यानि उनका कोई आरंभ है न अंत है। शिव के इन सभी रूप और सभी नामों का स्मरण मात्र ही हर भक्त के सभी दु:ख और कष्टों को दूर कर हर इच्छा और सुख की पूर्ति करने वाला माना गया है।
भगवान शंकर को जलाभिषेक किया जाता है यह हर कोई जानता है क्या आपको पता है कि भगवान शंकर को कब से जलाभिषेक की शुरुआत की गई ? अगर नहीं पता है तो आज हम आपको बताते हैं कि भगवान शंकर को त्रेतायुग से जलाभिषेक किया जा रहा है|
भगवान शिव के रूप-
इसके अलावा आपको भगवान शिव के रूपों के बारे में बताते हैं जिसका पुराणों में वर्णन किया गया है| तो आइये जाने शिव के कौन- कौन से रूप हैं|
महाकाल-
भगवान शिव का एक रूप है महाकाल| इस रूप में शिव को विनाशक के रूप में जाना जाता है| लोगों का मानना है शिव अपने भक्तों के अंदर बुराई और गलत सोच को खत्म करते हैं। इसलिए शिव को कृपालु भी कहा जाता है।
अर्धनारीश्वर-
हिमालय में कैलाश सबसे ऊंचा पर्वत है। शिव हमेशा मां शक्ति (पार्वती) के साथ रहते थे। कभी उनसे अलग नहीं होते। क्योंकि शिव बिना शक्ति और शक्ति बिना शिव का कोई अर्थ नहीं। कहते हैं पार्वती और भगवान शिव दोनों एक ही थे। तभी शिव को अर्धनारीश्वर भी कहा जाता है।
नटराज-
नृत्य देवता कहे जाने वाले नटराज भी शिव का ही एक रूप हैं। भगवान शिव को मूर्तिकला के जरिए कई रूपों में पेश किया जाता है। शिव के दोनों हाथ में जीवन और मृत्यु का संतुलन है।
नीलकंठ-
नीलकंठ उन्हें इसलिए कहा जाता है क्योंकि नीलकंठ भी कहा जाता है। कहा जाता है कि भगवान शंकर ने विष का पान कर लिया था जिसकी वजह से उनका कंठ नीला हो गया है|
पशुपतिनाथ-
उनके लंबे, घुंघराले बाल भगवान वायु और हवा का प्रतीक है, जिनसे सारे जीवों को सांस लेने के लिए हवा मिलती है। इसलिए भगवान शिव को सभी जीव-जंतुओं की जीवनरेखा माना जाता है। इसलिए उन्हें ‘पशुपतिनाथ‘ कहा जाता हैं।
त्रियम्बकेश्वर महादेव-
शिव की इसी जटा से पवित्र नदी गंगा की धारा निकलती है और यही जल हर मनुष्य तक पहुंचता है। भगवान शिव के तीसरे नेत्र के कारण उन्हें त्रियम्बका देवता भी कहा जाता हैं।
रूद्र-
गले में पड़ी 108 दानों की रूद्राक्ष माला इस बात का प्रतीक है कि इस संसार को बनाने में 108 तत्वों का इस्तेमाल किया गया है। इसीलिए भगवान को ‘रूद्र‘ के नाम से भी जाना जाता है।
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