हिंदू मान्यता का पोषक धर्म सिंधु ग्रंथ में वैशाख मास के स्नान, दान, तप,व्रत कथा आदि के श्रवण-मनन का विशेष महत्व बताया गया है। बारह महीनों में माघ, वैशाख और कार्तिक मास की विशेष महिमा बताई गई है।
ग्रंथों के अनुसार जो मनुष्य वर्ष भर धर्म, कर्म, दान, तप, व्रत और नियमों का पालन नहीं कर पाते वे वैशाख संयुक्त अघिक मास में सकल धर्म का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं।
आपको बता दें कि वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार स्वयं ब्रह्माजी ने वैशाख को सब मासों से उत्तम मास बताया है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला इसके समान दूसरा कोई मास नहीं है। जो वैशाख मास में सूर्योदय से पहले स्नान करता है, उससे भगवान विष्णु विशेष स्नेह करते हैं। सभी दानों से जो पुण्य होता है और सब तीर्थों में जो फल मिलता है। उसी को मनुष्य वैशाख मास में केवल जलदान करके प्राप्त कर लेता है।
जो जलदान नहीं कर सकता यदि वह दूसरों को जलदान का महत्व समझाए तो भी उसे श्रेष्ठ फल प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस मास में प्याऊ लगता है वह विष्णुलोक में स्थान पाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि जिसने वैशाख मास में प्याऊ लगाकर थके-मांदे मनुष्यों को संतुष्ट किया है, उसने ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देवताओं को संतुष्ट कर लिया।
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