गुरु बिनु ज्ञान कहाँ जग माही




'गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लगौ पांय, बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो
बताय ' भगवान से भी ऊँचा दर्जा पाने वाले गुरुजनों के सम्मान के लिए एक दिन
है व है शिक्षक दिवस | भारत में शिक्षक दिवस (5 सितम्बर) के मौके पर
शिक्षा क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान देने वाले कई शिक्षकों को प्रति वर्ष
राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा सम्मानित किया जाता है| यह सम्मान शिक्षकों
को उनके पेशे के लिए नहीं बल्कि उनकी शिक्षा देने के भावना और उनके शिक्षण
के प्रति समर्पण के लिए दिया जाता है|



शिक्षक दिवस का महत्व-



'शिक्षक दिवस' कहने-सुनने में तो बहुत अच्छा प्रतीत होता है। लेकिन क्या आप
इसके महत्व को समझते हैं। शिक्षक दिवस का मतलब साल में एक दिन बच्चों के
द्वारा अपने शिक्षक को भेंट में दिया गया एक गुलाब का फूल या ‍कोई भी उपहार
नहीं है और यह शिक्षक दिवस मनाने का सही तरीका भी नहीं है।



आप अगर शिक्षक दिवस का सही महत्व समझना चाहते है तो सर्वप्रथम आप हमेशा इस
बात को ध्यान में रखें कि आप एक छात्र हैं, और ‍उम्र में अपने शिक्षक से
काफ़ी छोटे है। और फिर हमारे संस्कार भी तो हमें यही सिखाते है कि हमें
अपने से बड़ों का आदर करना चाहिए। हमको अपने गुरु का आदर-सत्कार करना
चाहिए। हमें अपने गुरु की बात को ध्यान से सुनना और समझना चाहिए। अगर आपने
अपने क्रोध, ईर्ष्या को त्याग कर अपने अंदर संयम के बीज बोएं तो निश्‍चित
ही आपका व्यवहार आपको बहुत ऊँचाइयों तक ले जाएगा। और तभी हमारा शिक्षक दिवस
मनाने का महत्व भी सार्थक होगा।



क्यों मनाते हैं शिक्षक दिवस-



शिक्षक दिवस वैसे तो पूरे विश्व में मनाया जाता है लेकिन अलग-अलग तिथियों
को। भारत में यह दिवस पूर्व राष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के
जन्मदिवस पांच सितम्बर को मनाया जाता है। देश में शिक्षक दिवस मनाने की
परम्परा तब शुरू हुई जब डॉ. राधाकृष्णन 1962 में राष्ट्रपति बने और उनके
छात्रों एवं मित्रों ने उनका जन्मदिन मनाने की उनसे अनुमति मांगी।



स्वयं 40वर्षो तक शिक्षण कार्य कर चुके राधाकृष्णन ने कहा कि मेरा जन्मदिन
मनाने की अनुमति तभी मिलेगी जब केवल मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय देशभर के
शिक्षकों का दिवस आयोजित करें।’ बाद से प्रत्येक वर्ष शिक्षक दिवस मनाया
जाने लगा।



आपको बता दें कि राधाकृष्णन का जन्म पांच सितम्बर 1888 को मद्रास (चेन्नई)
के तिरुत्तानी कस्बे में हुआ था। उनके पिता वीरा समय्या एक जमींदारी में
तहसीलदार थे। उनका बचपन एवं किशोरावस्था तिरुत्तानी और तिरुपति (आंध्र
प्रदेश) में बीता। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से एम.ए.की पढ़ाई पूरी की
तथा ‘वेदांत के नीतिशास्त्र’ पर शोधपत्र प्रस्तुत कर पी.एचडी. की उपाधि
हासिल की।



मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज के दर्शनशास्त्र विभाग में 1909 में वह
व्याख्याता नियुक्त किए गए। फिर 1918 में मैसूर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर
बने। लंदन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में वह 1936 से 39 तक पूर्व देशीय
धर्म एवं नीतिशास्त्र के प्रोफेसर रहे। राधाकृष्णन 1939 से 48 तक बनारस
हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे।



वर्ष 1946 से 52 तक राधाकृष्णन को यूनेस्को के प्रतिनिधिमंडल के नेतृत्व का
अवसर मिला। वह रूस में 1949 से 52 तक भारत के राजदूत रहे। 1952 में ही
उन्हें भारत का उपराष्ट्रपति चुना गया। मई 1962 से मई 1967 तक उन्होंने
राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया।



डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन का मानना था कि शिक्षक उन्हीं लोगों को बनना
चाहिए जो सर्वाधिक योग्य व बुद्धिमान हों। उनका स्पष्ट कहना था कि जब तक
शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होता है और शिक्षा को एक
मिशन नहीं मानता है, तब तक अच्छी शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती है।
शिक्षक को छात्रों को सिर्फ पढ़ाकर संतुष्ट नहीं होना चाहिए, शिक्षकों को
अपने छात्रों का आदर व स्नेह भी अर्जित करना चाहिए। सिर्फ शिक्षक बन जाने
से सम्मान नहीं होता, सम्मान अर्जित करना महत्वपूर्ण है|

Post a Comment

Previous Post Next Post