भूत प्रेत के किसी तो आपने बहुत सुने होगे लेकिन एक ऐसा किस्सा शायद ही कहीं सुना होगा| हम बात कर रहे हैं चंदौली के हेतमपुर गाँव की| यहाँ का एक किला जो कभी तहखानों के लिए मशहूर था लेकिन आज लोगों के लिए दहशत का सबब है| रात का अँधेरा तो दूर दिन के उजाले में भी फटकना चाहता है| लोगों का कहना है कि जाने कि दीवार पर कोई साया हो, जो मौत का सबब बन जाए।
हेतमपुर गांव में लगभग पांच सौ वर्ष पुराना बादशाह हेतम खान का रहस्यमयी किला आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। हेतम खान के इस किले को अब लोगों ने नया नाम दे दिया है वह भुलैनी कोट| यहाँ के लोग अब इस किले को भुलैनी कोट के नाम से पुकारते हैं| गांव के जलील अंसारी का बताते हैं कि सैकड़ो वर्ष पूर्व इस किले के बाहर से एक बारात गुजर रही थी। कुछ लोग किले से मोहित होकर भीतर चले गए और कहाँ लापता हो गए ये आज तक न पता चल पाया। गांव में शोर हो गया कि हेतम खान के रहस्यमयी किले में कुछ लोग गायब हो गए। तभी से ग्रामीणों ने ईंट पत्थर से इसके सुरंग वाले रास्तो को बंद कर दिया हैं।
जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित हेतमपुर गांव में बादशाह हेतम खां का लगभग पांच सौ वर्ष पुराना रहस्यमयी किला आज जीर्ण-शीर्ण हालत में है। यहाँ का आलम यह है की लोग इधर से गुजरने से भी डरते हैं| इस गाँव के एक बुजुर्ग नंदू राय का कहना है कि अफवाहों की वजह से ये किला रहस्यमयी बना है, लेकिन इस किले के भीतर उन्होंने बचपन के दिनों में एक बंद पड़ा कमरा देखा था। उस कमरे में काफी बड़ा ताला लगा हुआ है और आज भी उसी कमरे में बादशाह की अकूत संपत्ति बंद पड़ी है।
पहले लोग इधर आने से डरते थे लेकिन जब पुरातत्व विभाग ने इसे अपने कब्जे में लेकर इसकी मरम्मत करवाई तो दिन के उजाले में इसे देखने के लिए लोग आ जाते हैं लेकिन शाम होते ही किसी की यह मजाल नहीं की यहाँ फटक जाए| इस किले के बारे में यहाँ के जानकार दीपक सिंह बताते हैं कि यह इलाका पहले महाईच परगना के अंतर्गत आता था जो गाजीपुर जिले में पड़ता था। तत्कालीन मुख्यमंत्री कमला पति त्रिपाठी ने गंगा नदी के कारण आवागमन में हो रही दिक्कतों के वजह से इसे वाराणसी जिले से जोड़ दिया तो जिला के विभाजन के बाद यह किला चंदौली के अंतर्गत हो गया।
मुख्य रूप से हेतमपुर के किले को हम पाँच भागों में बाँट सकते हैं-
1 भुलैनी कोट:- किले की पूर्वी दीवार में उत्तर दिशा की तरफ चार मन्जिल वाली विशाल इमारत है। इस इमारत में पूरब दिशा में खुला तीस फुट उँचा किले का मुख्य दरवाजा है। इमारत के बाहर (पूरब) इमारत से देखने पर हेतम खाँ की सुरक्षा व्यवस्था की मजबूती को आंका जा सकता है। चारों मन्जिलों से सामने पूरब की तरफ दुष्मनों का सामना करने के लिए 34 छोटे-बड़े मोरचे के कंगूरों का निर्माण है। सम्भवतः इन कंगूरों से बन्दूकधारी, तोपची व तीरंदाज किसी प्रकार के हमलों का सामना करने के लिए मोरचा बनाते रहे होंगे। किले के अन्दर घुसने पर दोनों तरफ बड़े-बड़े बरामदे हैं। इन बरामदों की छत नीची है। इन बरामदों में घोड़े व हाथी बाधे जाते थे क्योंकि इनमें बड़े-छोटे कई हौद हैं। स्थानीय नागरिक संजय यादव बताते हैं कि बुजुर्ग कहा करते थें कि दरवाजे के बायें तरफ की गिरी छत के कारण वह मुख्य सुरंग भी बन्द हो गया जिससे भूमिगत मार्ग से चुनार, जमानियाँ, धानापुर एवं कमालपुर तक पहुँचा जा सकता था। सुरंग मोटी दीवाल में बनी आलमारी के पार्ष्व में इस प्रकार स्थित थी कि आम आदमी कुछ समझ न पाये, अगर वह सुरंग में चला भी जाए तो भ्रामक रास्तों में उलझ कर भटक जाए। किले के विषाल परिसर में बाहरी दीवार में जमीन से सटा एक बड़ा ताखा दिखाई देता है। इसी ताखे में झुककर प्रवेष करने पर दीवार के ही उत्तर में उपर की ओर बढ़ती हुई एक सीढ़ी मिलती है। इसी सीढ़ी से भूलैनी कोट की उपरी मंजिल पर जाया जाता है तथा बीच में दाहिनी तरफ या बायें बने ताखों व आलमारीयों से रास्ते बदल-बदल ही उपर पहुँचा जाता है। इसी भुल-भुलैया के कारण इस इमारत को भुलैनी कोट के नाम से जाना जाता है।
बिचली कोट:- किले के दक्षिण-मध्य में स्थित यह इमारत (कोट) पूरे किले की मुख्य इमारत है। इमारत का मुख उत्तर दिशा की तरफ है। भुलैनी कोट (इमारत) से किले के मैदान में प्रवेश करने पर दक्षिण दिशा में सामने की तरफ बिचली कोट दिखायी देती है। तीन मंजिले इस इमारत में वास्तुकला का उत्कर्ष देखा जा सकता है। इमारत के निर्माण में ईंट का उपयोग आंशिक रूप से हुआ है। यह इमारत पूरे किले से पाँच फिट उँची है अपर गढ़िया पर बनी है। छः अठपहले पटादार व नक्काशीदार खम्भों पर टिके विशाल बरामदे के तीनों तरफ बड़े-बड़े कमरे हैं। कमरे के द्वार बरामदे में खुले हैं।
भीतरी कोट:- यह कोट बिचली कोट के ठीक नीचे जमीन के अन्दर है। इसमें जाने के लिए सभी रास्ते बन्द हो चुके हैं फिर भी इसके अन्दर टहल चुके कुछ स्थानीय नागरिकों ने बताया कि बिचली कोट (इमारत) की भाति भीतरी कोट (इमारत) में भी भवन है। स्थानीय राजेश ने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी केदारनाथ उपाध्याय से सुना था कि वे मशाल के सहारे कोट (इमारत) के अन्दर अपने मित्रों के साथ घूसे थे तथा कोट (इमारत) के अन्दर तीन मंजिल व एक इमारत है इनके पूर्वी छोर के कमरों में लगभग 25-25 किलो0 के ताले लगे थें इनका अनुमान था कि इन कमरों में भारी मात्रा में धन-दौलत व हथियार होंगे। भीतरी कोट (इमारत) से किले के चारों दिशाओं में सुरंग बाहर की तरफ निकले हैं।
उत्तरी कोट:- यह दो मंजिला कोट (इमारत) किले के उत्तर की तरफ स्थित है। इसकी बनावट भुलैनी कोट (इमारत) से कुछ छोटा है। इस कोट (इमारत) में छोटा दरवाजा उत्तर की तरफ था। दरवाजे के सामने लगभग 2.5 एकड़ में स्थित गहरा तालाब है।
दक्षिणी कोट:- यह कोट (इमारत) किले के दक्षिण-पष्चिम कोने में है। इसी कोट में हेतम खाँ ने मथारूद्र (ब्राह्मण) व एक मुसलमान धोबी को चुनवा दिया था। इस दो मंजिल इमारत के मध्य कुआँ था जिससे पूरे किले में पानी की आपूर्ति होती थी। इसी कोट में उत्तरी कक्ष से एक चौड़ा रास्ता किले की चहारदीवारी पर जाता था इसी मार्ग से सैनिक आपने घोड़ों व तोपों के साथ किले की चहारदीवारी पर चढ़ते थे।
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