प्राचीनकाल में महामुनि मरक डेय अपने अनुपम तपोबल के कारण श्रेष्ठ तपस्वी कहलाए। मुनि जैमिनी धर्मतत्वों के जिज्ञासु थे। एक बार उन्होंने मरक डेय के आश्रम में जाकर निवेदन किया, "मुनिवर, मैंने महर्षि व्यास के मुंह से समस्त पुराण, महाभारत, भागवत, इतिहास आदि समस्त-श्रुति, स्मृति और धर्म शास्त्रों का श्रवण किया है। इस समय मेरे मन में जो शंकाएं हैं उनका समाधान आपके मुंह से जानना चाहता हूं। मेरी शंकाओं का निवारण करके मुझे धन्य बनाइए।"
"यतिवर, बताइए, आपकी कैसी शंकाएं हैं?" मरक डेय ने पूछा। जैमिनी मुनि ने अत्यंत प्रसन्न होकर कहा, "इस जगत के कर्ता-धर्ता भगवान ने मनुष्य का जन्म क्यों लिया? राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी पांच पतियों की पत्नी क्यों बनी? श्रीकृष्ण के भ्राता बलराम ने किस कारण तीर्थयात्राएं कीं? द्रौपदी के पांच पुत्र उप पांडवों की ऐसी जघन्य मृत्यु क्यों हुई?"
मरक डेय ने कहा, "मुनिवर, मेरी तपस्या का समय हो चला है। विस्तार से ये वृत्तांत सुनाने के लिए मेरे पास समय नहीं है। मैं आपको एक उपाय बताता हूं। विंध्याचल में पिंगाक्ष, निवोध, सुपुत्र और सुमुख नाम के चार पक्षी हैं। ये चारों पक्षी दरोण के पुत्र हैं जो वेद और शास्त्रों में पारंगत हैं। उनसे तुम अपनी शंकाओं का निवारण कर सकते हो।" इस पर जैमिनी ने विस्मय में आकर पूछा, "पक्षी द्रोण के पुत्र कैसे हो सकते हैं? मानवों की भाषा का ज्ञान पक्षियों को कैसे हो सकता है?"
मरक डेय ने समझाया, "एक बार देवमुनि नारद ने वीणा-वादन करते हुए भूलोक का संचार किया, फिर वहां से अमरावती नगर पहुंचे। महेंद्र ने नारद का समुचित रूप में स्वागत-सत्कार किया और उनको उचित आसन पर बिठाकर कहा कि देव मुनि, आपको विदित ही है कि देव-सभा में रंभा, ऊर्वशी, तिलोत्तमा, मेनका, घृतांचि, डिश्रकेशी आदि देव गणिक, नर्तकियां हैं। आपके विचार से इनमें श्रेष्ठ कौन है? बताने की कृपा करें।"
नारद ने उन अप्सराओं को सम्बोधित कर पूछा, "हे देव गणिकाओं, तुम लोगों में से जो अधिक सुंदर, सरस-संलाप आदि विधाओं में श्रेष्ठ हैं, वही हमारे समक्ष नृत्य करें।" नारद का प्रश्न सुनकर सभी अप्सराएं मौन रहीं। तब इंद्र ने नारद से कहा, "देवर्षि, इन अप्सराओं में से आप ही स्वयं श्रेष्ठ सुंदरी का चयन करें।" इस पर नारद ने देव नर्तकियों से कहा, "तुम लोगों में जो नर्तकी दुर्वासा को मोह-जाल में बांध सकती है, वही मेरी दृष्टि में श्रेष्ठ है।"
नारद के वचन सुनकर सभी देव नर्तकियां भयभीत हो मौन रह गईं, लेकिन वपु नामक एक नर्तकी अपने स्थान से उठकर बोली, "मैं बड़ी कुशलतापूर्वक मुनि दुर्वासा का तपोभंग कर सकती हूं।" वपु का दृढ़ निश्चय देख महेंद्र ने प्रसन्न होकर कहा, "हे मदवती, यदि तुम मुनि दुर्वासा के असाधारण तप में विघ्न पैदा कर सकोगी तो मैं तुम्हें मुंहमांगा धन-संपत्ति अर्पित करूंगा।"
मुनि दुर्वासा हिमाचल प्रदेश में एक आश्रम बनाकर केवल वायु का सेवन करते हुए घोर तपस्या कर रहे थे। अप्सरा वपु दुर्वासा मुनि के आश्रम के एक कोस की दूरी पर वन-विहार करते मधुर संगीत का अलाप करने लगी। संगीत के माधुर्य पर मुग्ध हो मुनि दुर्वासा अपनी तपस्या बंद कर देव कन्या के समीप पहुंचे। अपना तपोभंग करनेवाली देवांगना को देख क्रुद्ध हो दुर्वासा ने श्राप दिया, "हे देव कन्ये, तुम मेरी तपस्या में विघ्न डालने के षड्यंत्र से यहां पर आई हो, इसलिए तुम गरुड़ कुल में पक्षी बनकर जन्म धारण करोगी।"
अप्सरा वपु ने भयभीत होकर दुर्वासा से प्रार्थना की, "हे महामुनि, आप कृपया मेरा अपराध क्षमा करें।" वपु पर दया करके महर्षि दुर्वासा ने कहा, "तुम सोलह वर्ष पक्षी रूप में जीवित रहकर चार पुत्रों को जन्म दोगी, तदनंतर बाण से घायल होकर प्राण त्याग करके पूर्व रूप को प्राप्त होगी।" इस प्रकार शाप-विमोचन का वरदान देकर महर्षि अपने आश्रम को लौट गए।
अप्सरा वपु ने दुर्वासा के शाप के प्रभाव से गरुड़वंश में केक पक्षी के रूप में जन्म लिया और मंदपाल के पुत्र द्रोण से विवाह किया। सोलह वर्ष की आयु में उसने गर्भ धारण किया। उसी काल में कौरव-पांडवों का युद्ध हुआ! मादा पक्षी उस महाभारत युद्ध को देखने गई। वह आकाश में उड़ रही थी, उस समय अर्जुन का एक बाण केक पक्षी को लगा। परिणामस्वरूप केक पक्षी का गर्भ विच्छिन्न हुआ। पक्षी का देहांत हुआ और वह अप्सरा रूप को पाकर देवलोक पहुंची। लेकिन उसके अंडे गर्भ-विच्छेद के कारण पृथ्वी पर गिर पड़े।
उस युद्ध में एक हाथी का घंटा कटकर उस अंडों पर गिरा और अंडे ढक गए। अंडों से बच्चे निकले। उस समय मार्ग से मुनि शमीक आ निकले। मुनि उन पक्षी शावकों पर अनुकंपा करके अपने आश्रम में ले जाकर पालने लगे। पक्षी शावकों को मानवों की भाषा में वार्तालाप करते सुनकर मुनि ने उससे पूछा, "तुम लोग कौन हो? तुम क्या अपने पूर्व जन्म-वृत्तांत बता सकते हो?"
इस पर पक्षियों ने कहा, "मुनिवर, प्राचीन काल में विपुल नामक एक तपस्वी थे। उनके सुकृत और तुंबुर नाम के दो पुत्र हुए। हम चारों सुकृत के पुत्र हुए। एक दिन इंद्र ने पक्षी के रूप में मेरे पिता के आश्रम में पहुंचकर मनुष्य का मांस मांगा। हमारे पिता ने हमें आदेश दिया कि हम पितृ-ऋण चुकाने के लिए पक्षी रूप में उपस्थित इंद्र का आहार बनें। हमने नहीं माना। इस पर हमारे पिता ने हमें पक्षी रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया और स्वयं पक्षी का आहार बनने के लिए तैयार हो गए। इंद्र ने प्रसन्न होकर हमारे पिता से कहा कि महामुनि, आपकी परीक्षा लेने के लिए मैंने मनुष्य का मांस मांगा। मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है।" यह कहकर इंद्र देवलोक को चले गए।
इसके बाद हमने अपने पिता से कहा, "पिताजी, हम मानव देह के प्रति आसक्ति के कारण आपकी आज्ञा का पालन नहीं कर सके। हम पर कृपा करके शाप से मुक्त कर दीजिए।" हमारे पिता ने अनुग्रह करके हमें शाप मुक्त होने का उपाय बताया, "पुत्रों, तुम लोग पक्षी रूप में ज्ञानी बनकर कुछ दिन विंध्याचल में निवास करो। महर्षि जैमिनी तुम्हारे पास आकर अपनी शंकाओं का निवारण करने के लिए तुम लोगों से अभ्यर्थना करेंगे, तब तुम लोग मेरे शाप से मुक्त हो जाओगे। इस कारण हम पक्षी बन गए।" पक्षियों का समाधान पाकर शमीक ने उन्हें समझाया, "तुम लोग शीघ्र विंध्याचल में चले जाओ।"
मुनि शमीक के आदेशानुसार केक पक्षी विंध्याचल में जाकर निवास करने लगे। इसलिए हे जैमिनी, तुम विंध्याचल में जाकर उन पक्षियों से अपनी शंका का समाधान कर लो। मरक डेय मुनि ने जैमिनी को उपाय बताया।
जैमिनी महर्षि विंध्याचल को गए। वहां पर उच्च स्वर में वेदाके का पाठ करते पक्षियों को देख जैमिनी ने अपने चार प्रश्न उनसे पूछा। इस पर पक्षियों ने समझाया, "यतिवर, संसार में जब-जब पाप बढ़ जाते हैं, तब-तब पापियों को दंड देने के लिए भगवान मानव रूप में अवतरित हुआ करते हैं। प्राचीन काल में त्वष्ट्र प्रजापति के पुत्र त्रिशीर्ष का इंद्र ने अपने वज्रायुध से संहार किया। परिणामस्वरूम वे ब्रह्म-हत्या के अपराधी बने।
इस कारण से इंद्र का दिव्य तेज चार भागों में विभाजित होकर यमराज, वायु और अश्विनी देवताओं में प्रेवश कर गया। इतने में त्रिशीर्ष के पिता त्वष्ट्र प्रजापति ने अपने पुत्र की मृत्यु पर दुखी होकर अपनी एस जटा काटकर होम कुंड में फेंक दिया। इस जटा से वृत्रासुर नामक एक राक्षस ने जन्म लिया। बड़े होने पर वह सभी लोकों पर अधिकार करने लगा।
इंद्र वृत्रासुर के आतंक से भयभीत होकर उससे मैत्री करके स्वर्ग पर शासन करते रहे। लेकिन भूदेवी पाप के भार से विचलित हुई और देवनगर अमरावती में जाकर इंद्र से निवेदन किया, "मैं इस पाप का भार नहीं वहन कर सकती। आन इन पापियों से पृथ्वी को मुक्त कर दीजिए।"
इंद्र ने भूमाता को सांत्वना देकर भेज दिया। इसके बाद समस्त देवताओं को बुलाकर उन्हें भूलोक में मानवों के रूप में जन्म लेने का आदेश दिया। सभी देवता पृथ्वी पर राजवंशों में पैदा हुए। उस समय इंद्र का दिव्य तेज यम और वायु रूपों में कुंती देवी के गर्भ से युधिष्ठिर और भीम के रूप में अवतरित हुए। इंद्र स्वयं अर्जुन के रूप में उत्पन्न हुए। इंद्र के ही दिव्य तेज का एक अंश अश्विनी देवताओं के रूप में माद्रि के गर्भ से नकुल और सहदेव के रूप में उत्पन्न हुए।
इस घटना के थोड़े दिनों के बाद इंद्र की पत्नी शची देवी महराजा द्रुपद के यहां अग्नि कुंड से द्रौपदी के रूप में उत्पन्न हुई। द्रौपदी के पांच पति पांडव इंद्र के दिव्य तेज से उत्पन्न हुए थे। इसलिए द्रौपदी पांचों पांडवों की पत्नी पांचाली बन गई। पक्षियों के मुंह से अपनी शंकाओं का समाधान पाकर महर्षि जैमिनी परमानंदित हुए।
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