हिंदुओं के लिए चारधाम यात्रा का मतलब है स्वर्ग की सीढ़ी। धर्मग्रंथों में इस यात्रा की महिमा का काफी गुणगान किया गया है। कहा जाता है कि जिसने चारधाम देख लिए उसने मानो धरती पर ही स्वर्ग के दर्शन कर लिए। चारधाम यात्रा के बारे में यह भी कहा जाता है कि जिसने चारो धामों के दर्शन कर लिए उसने न केवल पाप से मुक्त हो लिया बल्कि वह व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चक्र से परे हो जाता है|
हिन्दू धर्म के चार पावन धामों में एक बद्रीनाथ तीर्थ की यात्रा पर जहां कुदरत के तमाम खुशनुमा नजारों और पर्वत चोटियों की ऊंचाईयों को देखने का सुखद एहसास मिलता है, वहीं इस स्थान पर आने के बाद हर तीर्थयात्री स्वयं को धर्म और अध्यात्म की गहराइयों में उतरने से रोक नहीं सकता। क्योंकि इस तीर्थ और उसके आस-पास के सभी स्थान बहुत धार्मिक महत्व रखते हैं।
इन स्थानों में एक है बद्रीनाथ मंदिर के उत्तर दिशा में लगभग 100 मीटर दूरी पर स्थित है - ब्रह्मकपाल। यह अलकनंदा नदी के किनारे सिथि है| ब्रह्मकपाल पौराणिक महत्व का स्थान होने के साथ ही धार्मिक कर्मकाण्ड के लिए प्रमुख तीर्थ है। ब्रह्म कपाल श्राद्ध कर्म के लिए सबसे पवित्र तीर्थ माना जाता है।
ब्रह्मकपाल के बारे में यह कथा प्रचलित है कहते हैं कि एक बार भगवान भोलेनाथ ने जगत के विषय पर ब्रह्मदेव से मतभेद होने पर क्रोधित होकर त्रिशूल से ब्रह्मदेव के पांच सिरों में से एक सिर काट दिया। किंतु ब्रम्हा जी का सिर कटते ही शिव के त्रिशूल से ही चिपक गया। भगवान ने सिर से त्रिशूल को अलग करने की तमाम कोशिश की लेकिन ब्रम्हा जी का सिर त्रिशूल से अलग नहीं हो सका| इससे भगवान भोलेनाथ ब्रह्म दोष से दु:खी होकर बद्री क्षेत्र में आए। यहां शिव ने बद्रीनारायण की आराधना की। जिससे जगत पालक विष्णु प्रसन्न हुए। उनकी कृपा से ब्रह्मदेव का कटा सिर त्रिशूल से निकलकर दूर जा गिरा। भगवान शिव भी ब्रह्मदोष से मुक्त हुए।
कहते हैं कि ब्रम्हा जी वह सिर जहां गिरा, वह स्थान ही तीर्थ कहलाया। जो बद्रीनाथ धाम के समीप स्थित है। मान्यता है कि इससे ब्रह्मदेव के कटे सिर को भी मोक्ष प्राप्त हुआ। तब से ही यह क्षेत्र श्राद्ध कर्म और पितरों के मोक्ष तीर्थ के रुप में प्रसिद्ध है।
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