बसंत पंचमी हिन्दुओं का
एक प्रमुख त्यौहार
है| माघ महीने
की शुक्ल पंचमी
से बसंत ऋतु
का आरंभ होता
है। बसंत का
उत्सव प्रकृति का
उत्सव है। सतत
सुंदर लगने वाली
प्रकृति बसंत ऋतु
में सोलह कलाओं
से खिल उठती
है। बसंत को
ऋतुओं का राजा
कहा गया है
क्योंकि इस समय
पंच-तत्व अपना
प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप
में प्रकट होते
हैं। बसंत ऋतु
आते ही आकाश
एकदम स्वच्छ हो
जाता है, अग्नि
रुचिकर तो जल
पीयूष के सामान
सुखदाता और धरती
उसका तो कहना
ही क्या वह
तो मानों साकार
सौंदर्य का दर्शन
कराने वाली प्रतीत
होती है। ठंड
से ठिठुरे विहंग
अब उड़ने का
बहाना ढूंढते हैं
तो किसान लहलहाती
जौ की बालियों
और सरसों के
फूलों को देखकर
नहीं अघाता। इस
ऋतु के आते
ही हवा अपना
रुख बदल देती
है जो सुख
की अनुभूति कराती
है| धनी जहाँ
प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने
की लालसा प्रकट
करने लगते हैं
वहीँ शिशिर की
प्रताड़ना से तंग
निर्धन सुख की
अनुभूत करने लगते
हैं| सच में!
प्रकृति तो मानों
उन्मादी हो जाती
है। हो भी
क्यों ना! पुनर्जन्म
जो हो जाता
है उसका। श्रावण
की पनपी हरियाली
शरद के बाद
हेमन्त और शिशिर
में वृद्धा के
समान हो जाती
है, तब बसंत
उसका सौन्दर्य लौटा
देता है। नवगात,
नवपल्ल्व, नवकुसुम के साथ
नवगंध का उपहार
देकर विलक्षणा बना
देता है।
प्राचीनकाल
से इसे ज्ञान
और कला की
देवी मां सरस्वती
का जन्मदिवस माना
जाता है। जो
शिक्षाविद भारत और
भारतीयता से प्रेम
करते हैं, वे
इस दिन मां
शारदे की पूजा
कर उनसे और
अधिक ज्ञानवान होने
की प्रार्थना करते
हैं। जो महत्व
सैनिकों के लिए
अपने शस्त्रों और
विजयादशमी का है,
जो विद्वानों के
लिए अपनी पुस्तकों
और व्यास पूर्णिमा
का है, जो
व्यापारियों के लिए
अपने तराजू, बाट,
बहीखातों और दीपावली
का है, वही
महत्व कलाकारों के
लिए वसंत पंचमी
का है। चाहे
वे कवि हों
या लेखक, गायक
हों या वादक,
नाटककार हों या
नृत्यकार, सब दिन
का प्रारम्भ अपने
उपकरणों की पूजा
और मां सरस्वती
की वंदना से
करते हैं।
बसंत पंचमी को सभी
शुभ कार्यों के
लिए अत्यंत शुभ
मुहूर्त माना गया
है। गृह प्रवेश
के लिए बसंत
पंचमी को पुराणों
में भी अत्यंत
श्रेयस्कर माना गया
है। बसंत पंचमी
को अत्यंत शुभ
मुहूर्त मानने के पीछे
अनेक कारण हैं।
यह पर्व अधिकतर
माघ मास में
ही पड़ता है।
माघ मास का
भी धार्मिक एवं
आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष
महत्व है। इस
माह में पवित्र
तीर्थों में स्नान
करने का विशेष
महत्व बताया गया
है। दूसरे इस
समय सूर्यदेव भी
उत्तरायण होते हैं।
बसंत पंचमी का महत्व-
बसंत पंचमी पर न
केवल पीले रंग
के वस्त्र पहने
जाते हैं, अपितु
खाद्य पदार्थों में
भी पीले चावल
पीले लड्डू व
केसर युक्त खीर
का उपयोग किया
जाता है, जिसे
बच्चे तथा बड़े-बूढ़े सभी पसंद
करते है। अतः
इस दिन सब
कुछ पीला दिखाई
देता है और
प्रकृति खेतों को पीले-सुनहरे रंग से
सजा देती है,
तो दूसरी ओर
घर-घर में
लोग के परिधान
भी पीले दृष्टिगोचर
होते हैं। नवयुवक-युवती एक -दूसरे
के माथे पर
चंदन या हल्दी
का तिलक लगाकर
पूजा समारोह आरम्भ
करते हैं। तब
सभी लोग अपने
दाएं हाथ की
तीसरी उंगली में
हल्दी, चंदन व
रोली के मिश्रण
को माँ सरस्वती
के चरणों एवं
मस्तक पर लगाते
हैं, और जलार्पण
करते हैं। धान
व फलों को
मूर्तियों पर बरसाया
जाता है। गृहलक्ष्मी
फिर को बेर,
संगरी, लड्डू इत्यादि बांटती
है। इस ऋतु
को फूलों का
मौसम भी कहा
जा सकता है|
इस समय ना
तो ठण्ड होती
है और ना
ही गरमी होती
है| इस समय
तक आमों के
वृक्षों पर आम
के लिए मंजरी
आनी आरम्भ हो
जाती है| जिन
व्यक्तियों को डायबिटीज,
अतिसार, रक्त विकार
की समस्या है
उन्हें आम की
मंजरी के सेवन
से इन समस्याओं
से छुटकारा मिल
सकता है| इसलिए
वसंत पंचमी के
दिन आम की
मंजरी अथवा आम
के फूलों को
हाथों पर मलना
चाहिए| इससे उन्हें
उपरोक्त समस्याओं से मुक्ति
मिल सकती है|
बसंत पंचमी की कथा-
सृष्टि के प्रारंभिक
काल में भगवान
विष्णु की आज्ञा
से ब्रह्मा ने
जीवों, खासतौर पर मनुष्य
योनि की रचना
की। अपनी सर्जना
से वे संतुष्ट
नहीं थे। एक
दिन वह अपनी
बनाई हुई सृष्टि
को देखने के
लिए धरती पर
भ्रमण करने के
लिए आए| ब्रह्मा
जी को अपनी
बनाई सृष्टि में
कुछ कमी का
अहसास हो रहा
था, लेकिन वह
समझ नहीं पा
रहे थे कि
किस बात की
कमी है| उन्हें
पशु-पक्षी, मनुष्य
तथा पेड़-पौधे
सभी चुप दिखाई
दे रहे थे|
तब उन्हें आभास
हुआ कि क्या
कमी है| वह
सोचने लगे कि
ऎसा क्या किया
जाए कि सभी
बोले, गाएं और
खुशी में झूमे|
ऎसा विचार करते
हुए ब्रह्मा जी
ने अपने कमण्डल
से जल लेकर
कमल पुष्पों तथा
धरती पर छिड़का|
जल छिड़कने के
बाद श्वेत वस्त्र
धारण किए हुए
एक देवी प्रकट
हुई| इस देवी
के चार हाथ
थे| एक हाथ
में वीणा, दूसरे
हाथ में कमल,
तीसरे हाथ में
माला तथा चतुर्थ
हाथ में पुस्तक
थी| ब्रह्मा जी
ने देवी को
वरदान दिया कि
तुम सभी प्राणियों
के कण्ठ में
निवास करोगी| सभी
के अंदर चेतना
भरोगी, जिस भी
प्राणी में तुम्हारा
वास होगा वह
अपनी विद्वता के
बल पर समाज
में पूज्यनीय होगा|
ब्रह्मा जी ने
कहा कि तुम्हें
संसार में देवी
भगवती के नाम
से जाना जाएगा|
ब्रह्मा जी ने
देवी सरस्वती को
वरदान देते हुए
कहा कि तुम्हारे
द्वारा समाज का
कल्याण होगा इसलिए
समाज में रहने
वाले लोग तुम्हारा
पूजन करेगें| इसलिए
प्राचीन काल से
वसंत पंचमी के
दिन देवी सरस्वती
की पूजा की
जाती है अथवा
कह सकते हैं
कि इस दिन
को सरस्वती के
जन्म दिवस के
रुप में मनाया
जाता है|
‘प्रणो देवी सरस्वती
वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु’
अर्थात ये परम
चेतना हैं। सरस्वती
के रूप में
ये हमारी बुद्धि,
प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों
की संरक्षिका हैं।
हममें जो आचार
और मेधा है
उसका आधार भगवती
सरस्वती ही हैं।
इनकी समृद्धि और
स्वरूप का वैभव
अद्भुत है।
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