
बच्चों को पढ़ाई की 'टेंशन' से भी मुक्ति मिल गई है। बदलते वक्त के साथ अब
ऐसे बहुत ही कम लोग हैं जो गर्मियों की छुट्टियों में अपने मामा के यहां
सैर सपाटा करने या घूमने जाते हैं। अब तो प्रतिस्पर्धा के इस युग में
गर्मियों की छुट्टियों में भी उन्हें किताबों में सिर खपाना पड़ रहा है।
अब वे दिन गए जब गर्मियों की छुट्टियां होने की कल्पना मात्र से ही बच्चे
चहक उठते थे। छुट्टियां शुरू होने से पहले ही बच्चे घूमने-फिरने व मौज
मस्ती की योजना बनाने में मशगूल रहते थे।अधिकांशत: बच्चे छुट्टियों में
मामा के घर जाना अधिक पसंद करते थे। गांव-देहात की बात करें तो मामा के
गांव से निकलने वाली नदी या तालाब में घंटों तैरने का मौका मिलता था।
फिर आम के बगीचे में धमा चौकड़ी मचती थी।दिन भर की भागदौड़ व खेलकूद के बाद
रात में नानी से परी कथाएं तथा धार्मिक कहानियां सुनना बच्चों को पसंद
होता था।गर्मियों की छुट्टियों में सगे-संबंधियों के यहां जाने की एक
प्रकार से परंपरा सी थी। छुट्टियों में रिश्तेदारों के घर जाने से बच्चों
के रिश्ते नातों व उनकी अहमियत को करीब से जानने समझने का मौका मिलता है।
अब वक्त बदल गया है। आज के हाईटेक युग में बच्चों की मानसिकता व कार्यशैली
पर व्यस्तता का बुरा असर पड़ा है।
प्रतिस्पर्धा के इस युग में गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों में कोई
उत्साह नहीं देखा जाता है। स्थिति यह है कि वार्षिक परीक्षा समाप्त होते ही
उन्हें अगली कक्षा की पुस्तकें लाकर थमा दी जाती हैं।दो-दो तीन-तीन ट्यूशन
लगा दिए जाते हैं सो अलग। कइयों को तो जबरन कोचिंग सेंटर भेजा जाता है। कई
मामले तो ऐसे भी देखे गए जिसमें बच्चोंकी इच्छा गर्मियों की छुट्टियों में
बाहर घूमने-फिरने की रहती है,लेकिन अभिभावकों के डर से वे अपनी इच्छा
जाहिर नहीं कर पाते हैं। बच्चों के दिमाग पर प्रतिस्पर्धा का भूत इस कदर
सवार रहता है कि कहीं जाने पर भी 8-10 दिनों में ही वापस आ जाते हैं। शहरी
बच्चों की स्थिति तो यह है कि यदि वहां कंप्यूटर,वीडियो गेम या फिर अन्य
सुविधाएं नहीं हैं तो वे बोरियत महसूस करने लगते हैं।
शहरी क्षेत्र के बच्चों में समर कैंप ज्वाइन करने का नया चलन शुरू हो गया
है।शहर में जगह-जगह स्थापित समर कैम्पों में बच्चों के मनोरंजन के कई साधन
उपलब्ध रहते हैं यहां उन्हें मनोरंजन के साथ कई कलाएं सिखाई जाती हैं कई
लड़कियां गर्मियों के इस मौसम में
पाककला,सिलाई,बुनाई,कढ़ाई,मेहंदी,चित्रकला, ब्यूटीपार्लर आदि का कोर्स कर
लेती हैं तो कई संगीत की बारीकियों के अलावा गायन सीखती हैं। इस बदलावने
रिश्तों की अहमियत कम कर दी है।रिश्ते अब अंकल-आंटी तक सिमट गए हैं।
छुट्टियों में सगे संबंधियों के यहां जाने से वे रिश्तों को काफी करीब से
जानते वसमझते थे। इसी के साथ उनमें रिश्तों के अनुरूप सम्मान देने व उनका
आदर करने का भाव भी पैदा होता था।लेकिन अब समय बदल गया है।
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