नागपाल के निलंबन पर सियासत गरमाई



उत्तर प्रदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की अधिकारी दुर्गा शक्ति
नागपाल के निलंबन को लेकर शुक्रवार को एक वीडियो सामने आने के बाद पहले से
ही इस मामले में फजीहत झेल रही राज्य सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं,
जिसमें समाजवादी पार्टी (सपा) के एक नेता को यह कहते दिखाया गया है कि
नागपाल का निलंबन उन्होंने 41 मिनट के भीतर करवाया। यह वीडियो सामने आने के
बाद विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तेवर और तल्ख हो गए हैं।
उसने राज्य की सपा सरकार पर तीखे हमले किए हैं।



यह वीडियो, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के उस बयान के बाद सामने आया है जिसमें
उन्होंने कहा है कि नागपाल का निलंबन इसलिए किया गया, क्योंकि उन्होंने
बिना-सोचे समझे इस तरह का कदम उठाया जिससे सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगड़
सकता था। उन्होंने अधिकारी का निलंबन वापस लेने से भी इंकार किया। वीडियो
में सपा नेता व उत्तर प्रदेश एग्रो कॉरपोरेशन के अध्यक्ष नरेंद्र भाटी को
ग्रेटर नोएडा में समर्थकों से यह कहते दिखाया गया है कि उन्होंने सपा
अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सुबह करीब 10.30
बजे फोन किया और पूर्वाह्न् 11.11 बजे नागपाल के निलंबन का आदेश आ गया।



भाटी को उत्तर प्रदेश एग्रो कॉरपोरेशन के अध्यक्ष के नाते राज्य मंत्री का
दर्जा प्राप्त है और वह आगामी लोकसभा चुनाव में गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट
से सपा के उम्मीदवार हैं। भाटी के उक्त बयान के बाद इस मुद्दे पर पहले से
ही आक्रामक भाजपा के तेवर अधिक तल्ख हो गए हैं। नोएडा से भाजपा विधायक महेश
शर्मा ने आरोप लगाया है कि भाटी खनन माफिया से मिले हुए हैं। उन्होंने खनन
माफियाओं से भाटी के संबंधों की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से
करवाने की मांग की है।



भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि
मुख्यमंत्री का झूठ पकड़ा गया है। कल तक मुख्यमंत्री कह रहे थे कि आईएएस
अधिकारी का निलंबन एक प्रशासनिक फैसला था। अब यह स्पष्ट हो गया है कि इसके
पीछे राजनीतिक मकसद था। एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने भी इस बात से सहमति
जताई कि भाटी का वीडियो सामने आने के बाद सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
अब तक सरकार कहती आ रही थी कि उनका निलंबन मस्जिद परिसर की दीवार गिराने का
आदेश देने के कारण हुआ, जिससे सांप्रदायिक माहौल बिगड़ सकता था। लेकिन
सरकार का यह दावा भी विवादों में घिर गया है, क्योंकि इस मामले में सरकार
को भेजी गई जिलाधिकारी की रिपोर्ट में इससे इंकार किया गया है।



जिलाधिकारी की रिपोर्ट के मुताबिक, सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के तौर
पर तैनात नागपाल ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया था, बल्कि निर्माण के अवैध होने
की जानकारी मिलने के बाद ग्रामीणों ने स्वयं उसे ढहा दिया। 





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