"मैं कभी भी किसी हिंसा विरोधी रैली में शामिल नहीं हो सकती| अगर आप कोई शांति मार्च का आयोजन करें तो मुझे जरूर आमंत्रित करें| मैं मानती हूं कि अगर आप जो नहीं चाहते है (हिंसा) उसके आप जो चाहते हैं (शांति) अगर उस पर केंद्रित रहें, तो आप उसे प्रचुरता में पा सकेंगे|" यह शब्द हैं उस व्यक्ति के जिसने अपना सारा जीवन मानवता की सेवा में बिता दिया| प्रेम, शान्ति और मानवता की प्रतिक मानी जाने वाली मदर टेरेसा की सोमवार को 104वीं जयंती थी| इस अवसर पर पूरे विश्व ने उन्हें याद किया|
जीवन परिचय
मेसेडोनिया की राजधानी सोप्जे में 26 अगस्त, 1910 को जन्मीं मदर टेरेसा का वास्तविक नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था| उन्होंने जीवन को मात्र आठ साल की कम उम्र में करीब से समझना शुरू कर दिया था जब उनके पिता और अल्बानियाई नेता निकोला बोजशियु का निधन हो गया| मात्र 12 साल की उम्र में ही उन्होंने खुद को 'ईश्वर की सेवा' के प्रति प्रतिबद्ध किया और वर्ष 1928 में आयरलैंड के इंस्टिट्यूट ऑफ ब्लेस्ड वर्जिन मैरी में शामिल हुईं अग्नेशे को सिस्टर मैरी टेरेसा का नाम मिला और वर्ष 1929 में उन्हें कोलकाता में सेवा के लिए भेजा गया| 24 मई, 1931 में उन्होंने नन की शपथ ली|
भारत में लगभग 15 सालों तो तत्कालीन कलकत्ता के सैंट मैरीज हाई स्कूल में पढ़ाने के बाद 10 सितंबर, 1946 को अपनी दार्जीलिंग यात्रा में उन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज को अपनी दिशा बनाई और जरूरतमंदों की सेवा में आजीवन जुटने का फैसला लिया| उन्होंने अपने कंधों पर झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा लिया|
मिशनरी ऑफ चैरिटी
वर्ष 1950 में उन्होंने कलकत्ता में मिशनरी ऑफ चैरिटी नामक संस्था की नींव रखी जिसका उद्देश्य समाज के निचले वर्गों और जरूरतमंदों की सेवा था| इसकी स्थापना के साथ ही उन्होंने नीली किनारे वाली सफेद साड़ी की वेशभूषा को अपनाया| आज इस मिशनरी की शाखाएं दुनिया के सौ से भी अधिक देशों में है और करीब 4000 नन इससे जुड़ी हैं| इसके बाद उन्होंने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ नामक आश्रम भी खोलें जिसमें कुष्ठ रोग जैसे कई गंभीर रोगों से पीड़ित लोगों और गरीबों की सेवा वह खुद करती थीं|
नोबल शांति पुरस्कार-पद्मश्री से सम्मानित
मदर टेरेसा मानवता की सच्ची अनुयायी थीं जिसने अपना समस्त जीवन असहायों की सेवा को समर्पित किया| समाजसेवा के क्षेत्र में उनके समर्पण के लिए उन्हें वर्ष 1962 में भारत सरकार की ओर से पद्मश्री सम्मान और वर्ष 1980 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया| समाजसेवा की दिशा में इनके प्रयासों को न सिर्फ भारत बलिक पूरे विश्व ने मिसाल माना और वर्ष 1979 में नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया| मदर टेरेस ने सम्मान में मिली सारी राशि को गरीबों की सेवा के लिए फंड में दे दिया|
निधन
मानवता को जीवन का उद्देश्य मानने वाली इस महिला ने आजीवन सेवा, त्याग और सद्भाव के रास्ते को ही अपना मार्ग बनाए रखा| मानवता की सेवा में अपना जीवन अर्पित करने वाली मदर टेरेसा का निधन 5 सितंबर, 1997 को कोलकाता में हो गया| उन्होंने अपने वात्सल्य से पहले कोलकाता तो बाद में पूरे देश के गरीब-असहायों का दुःख दर्द मिटाया| भारत के लिए उनका प्रेम ही था जिसने उन्हें सबके दिल में जगह दिला दी|
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