'अब्बू, कर्फ्यू क्या किसी मेले का नाम है?'





कृषि प्रधान जिले के रूप में सात समंदर पार तक अपनी पहचान बनाने वाले मुजफ्फरनगर जिला आज भयानक हिंसा को लेकर सुर्खियों में है। सद्भाव और एकता की मिसाल पेश करने वाले इस जिले के बाशिंदों के बच्चे आज अपने मां-बाप से यह पूछ रहे हैं कि कर्फ्यू क्या किसी मेले का नाम है? इसमें तो खेल तमाशों की जगह पुलिस और सेना ही दिखाई दे रही है।





पहली बार कर्फ्यू का सामना कर रहे यहां के बच्चे शहर के अजीब सन्नाटे को लेकर अपना बचपन भूल बैठे हैं। मुजफ्फरनगर में हिंसा भड़कने के साथ ही यहां के निवासियों में वैमनस्य इतना भर गया कि वे आपसी भाईचारे और साम्प्रदायिक सौहार्द्र का अपना इतिहास ही भूल बैठे। कभी चाचा रहीम और सुरेश एक साथ चाय पीते और ताश खेलते थे। उनके बच्चे भी आपस में खेलते थे, लेकिन आज दोनों के बच्चे अपने-अपने घरों की छतों से एक-दूसरे को खौफजदा आंखों से टकटकी लगाए देख रहे हैं।





मुजफ्फरनगर शहर और गांव की पहचान एशिया की सबसे बड़ी गुड़ मंडी, गन्ने की लहराती फसलों, चीनी के अपार उत्पादन, इस्पात और कागज उद्योग के लिए रही है। यहां के लोगों ने जिम्मेदारी का अहसास करते हुए हर बड़ी-से-बड़ी समस्या को सुलझाया है। यह अलग बात है कि यहां कर्फ्यू भी कई बार लगे हैं, लेकिन आज जैसी स्थिति कभी नहीं देखी गई। जिले के निवासियों ने सौहाद्र्र का संदेश भी दिया है।





उत्तराखंड राज्य निर्माण के दौरान जब आंदोलनकारियों पर रामपुर तिराहे पर दो अक्टूबर, 1994 को पुलिस ने गोलियां बरसाई थीं तो यहां के लोगों ने महिला और पुरुषों को बचाया था। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत ने 1989 में भोपा क्षेत्र में मुस्लिम परिवार की बेटी नईमा हत्याकांड के विरोध में एक महीने तक इंसाफ की लड़ाई लड़ी थी और आंदोलन चलाया था।





विकास और तरक्की की राह ढूंढने वाले गांवों के दामन पर आज हर तरफ खून के छींटे हैं और लोग एक-दूसरे को इस नजर से देख रहे हैं जैसे वे इंसान नहीं कुछ और हों। कवाल के सुंदर अपने मित्र आसिफ के साथ प्रतिदिन चाय पीते थे और घर परिवार में आना-जाना था, लेकिन हिंसा के बाद सभी लोग घरों में कैद हो गए हैं।





मुजफ्फरनगर के खालापार में रहमान का पांच वर्षीय बेटा दानिश अपने अब्बू और चचा अखलाक से सवाल करता है कि "चाचा, यह कर्फ्यू क्या होता है? कर्फ्यू क्या किसी मेले का नाम है?" उसके अब्बू और चाचा उसे समझाते हैं, लेकिन बात बच्चे के समझ में नहीं आती। वह कहता है कि "ये सेना और पुलिस वाले हमारी गली-मोहल्ले में जब टक टक बूटों की आवाज करते हैं तो मुझे नींद भी नहीं आती।" दानिश रोता है और जाट कालोनी में रहने वाले स्कूल के मित्रों और अपने शिक्षकों से मिलना चाहता है।





मामला देश की रक्षा का हो या देश के विकास में योगदान का, जिले के लोग हमेशा आगे रहे हैं, लेकिन हिंसा के इस वातावरण में यह जिला शांति, सौहाद्र्र के मामले में जैसे पीछे छूटता जा रहा है।





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