हिंदू धर्म में मानव विकास को धार्मिक व्यवस्था के रूप में जीवन से जोड़ने
के लिए विभिन्न अवतारों का विधान मिलता है। इन्हीं अवतारों में से एक भगवान
विश्वकर्मा को दुनिया का इंजीनियर माना गया है, अर्थात समूचे विश्व का
ढांचा उन्होंने ही तैयार किया है। वे ही प्रथम आविष्कारक थे। हिंदू
धर्मग्रंथों में यांत्रिक, वास्तुकला, धातुकर्म, प्रक्षेपास्त्र विद्या,
वैमानिकी विद्या आदि का जो प्रसंग मिलता है, इन सबके अधिष्ठाता विश्वकर्मा
माने जाते हैं। इस बार विश्वकर्मा पूजा 17 सितम्बर दिन मंगलवार को पड़ रही
है|
विश्वकर्मा ने मानव को सुख-सुविधाएं प्रदान करने के लिए अनेक यंत्रों व
शक्ति संपन्न भौतिक साधनों का निर्माण किया। इन्हीं साधनों द्वारा मानव
समाज भौतिक चरमोत्कर्ष को प्राप्त करता रहा है। प्राचीन शास्त्रों में
वैमानकीय विद्या, नवविद्या, यंत्र निर्माण विद्या आदि का उपदेश भगवान
विश्वकर्मा ने दिया। माना जाता है कि प्राचीन समय में स्वर्ग लोक, लंका,
द्वारिका और हस्तिनापुर जैसे नगरों के निर्माणकर्ता भी विश्वकर्मा ही थे।
माना जाता है कि विश्वकर्मा ने ही इंद्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी,
पांडवपुरी, सुदामापुरी और शिवमंडलपुरी आदि का निर्माण किया। पुष्पक विमान
का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएं
भी इनके द्वारा निर्मित हैं। कर्ण का कुंडल, विष्णु का सुदर्शन चक्र, शंकर
का त्रिशूल और यमराज का कालदंड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भी भगवान
विश्वकर्मा ने ही किया है।
एक कथा के अनुसार यह मान्यता है कि सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम नारायण
अर्थात् विष्णु भगवान क्षीर सागर में शेषशय्या पर आविर्भूत हुए। उनके
नाभि-कमल से चतुर्मुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे। ब्रह्मा के पुत्र
'धर्म' तथा धर्म के पुत्र 'वास्तुदेव' हुए।
कहा जाता है कि धर्म की 'वस्तु' नामक स्त्री से उत्पन्न 'वास्तु' सातवें
पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव की
'अंगिरसी' नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए थे। अपने पिता की भांति ही
विश्वकर्मा भी आगे चलकर वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने। भगवान
विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं। उन्हें कहीं पर दो बाहु, कहीं चार,
कहीं पर दस बाहुओं तथा एक मुख और कहीं पर चार मुख व पंचमुखों के साथ भी
दिखाया गया है। उनके पांच पुत्र मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ हैं।
यह भी मान्यता है कि ये पांचों वास्तुशिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत
थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार भी वैदिक काल में किया। इस प्रसंग
में मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी
ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी से जोड़ा जाता है। हिंदू धर्मशास्त्रों और
ग्रथों में विश्वकर्मा के पांच स्वरूपों और अवतारों का वर्णन मिलता है :
विराट विश्वकर्मा : सृष्टि के रचयिता
धर्मवंशी विश्वकर्मा : शिल्प विज्ञान विधाता और प्रभात पुत्र
अंगिरावंशी विश्वकर्मा : आदि विज्ञान विधाता और वसु पुत्र
सुधन्वा विश्वकर्मा : विज्ञान के जन्मदाता (अथवी ऋषि के पौत्र)
भृंगुवंशी विश्वकर्मा : उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र)
विश्वकर्मा के विषय में कई भ्रांतियां हैं। बहुत से विद्वान विश्वकर्मा नाम
को एक उपाधि मानते हैं, क्योंकि संस्कृत साहित्य में भी समकालीन कई
विश्वकर्माओं का उल्लेख है। कुछ विद्वान अंगिरा पुत्र सुधन्वा को आदि
विश्वकर्मा मानते हैं, तो कुछ भुवन पुत्र भौवन विश्वकर्मा को आदि
विश्वकर्मा मानते हैं।
ऋग्वेद में विश्वकर्मा सूक्त के नाम से 11 ऋचाएं लिखी हुई हैं। यही सूक्त
यजुर्वेद अध्याय 17, सूक्त मंत्र 16 से 31 तक 16 मंत्रों में आया है।
ऋग्वेद में विश्वकर्मा शब्द इंद्र व सूर्य का विशेषण बनकर भी प्रयुक्त हुआ
है। महाभारत के खिल भाग सहित सभी पुराणकार प्रभात पुत्र विश्वकर्मा को आदि
विश्वकर्मा मानते हैं। स्कंद पुराण प्रभात खंड के इस श्लोक की भांति किंचित
पाठभेद से सभी पुराणों में यह श्लोक मिलता है :
बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी।
प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च।
विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापति: ।।16।।
महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना जो ब्रह्मविद्या
जानने वाली थी, वह अष्टम वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उससे संपूर्ण
शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ। भारत में शिल्प
संकायों, कारखानों और उद्योगों में प्रत्येक वर्ष 17 सितंबर को भगवान
विश्वकर्मा पूजनोत्सव का आयोजन किया जाता है।
www.pardaphash.com
Post a Comment