'अनुशासन के कड़े पर नर्म दिल थे मन्ना डे'







महान पाश्र्व गायक मन्ना डे के करीबी लोगों को कहना है कि वह ज्ञान को तलाशने वाले, साहसिक व्यक्तित्व वाले और बेहद सख्त अनुशासन वाले व्यक्ति थे। मन्ना डे का गुरुवार तड़के बेंगलुरू के एक अस्पताल में निधन हो गया। 94 साल के डे लंबे समय से बीमार थे। वाइलिन वादक दुर्बादल चटर्जी मन्ना डे के साथ बिताए अपने चार दशकों को याद करते हुए कहते हैं, "वह अपनी जड़ों को नहीं भूले थे। बाहर से सख्त होने के बावजूद वह अंदर से उतने ही नर्म दिल इंसान थे। मछली पकड़ना उनका प्रिय शौक था।"





चटर्जी ने बताया, "उनके बारे में कई लोगों को गलतफहमी थी कि वह बेहद सख्त और रूखे व्यवहार वाले हैं। असल में तो वह अंदर से बेहद नर्म दिल इंसान थे। यदि वह किसी को पसंद करते तो उसके कायल हो जाते और यदि नापसंद करते तो सख्त रहते। वह अजनबियों से घुलते-मिलते नहीं थे।" चटर्जी, मन्ना डे के बारे में एक मशहूर किस्सा बताते हैं, "एक बार हम उनके पुराने घर में बैठे थे। वह हारमोनियम लेकर गा रहे थे और मैं उनके सुरों को लिखता जा रहा था। अचानक एक लड़की दरवाजा खोलकर अंदर आई। मन्ना डे ने बिल्कुल रूखाई और सख्ती से कहा कि वह व्यस्त हैं और उसे वहां से जाने को कहा। लेकिन वह लड़की थोड़ी देर बाद फिर वहीं नजर आई।"





उन्होंने आगे बताया, "इस बार लड़की ने आग्रह से पूछा कि क्या मन्ना डे का घर यही है। मन्ना डे ने दो टूक शब्दों में पूछा कि वह क्यों आई है, वह उनकी बहुत बड़ी प्रशंसक थी और एक बार उनके चरण स्पर्श करना चाहती थी। यह सुनकर डे नर्म पड़ गए और उस लड़की को अंदर आने दिया। वह बेहद शालीन थे।" मन्ना डे ने अपने संगीत करियर में हिंदी, बांग्ला, गुजराती, मराठी, मलयालम, कन्नड़, असमी फिल्मों में पाश्र्व गायक के रूप में अपनी आवाज दी। उन्हें भारतीय क्षेत्रीय संगीत से बेहद प्रेम था, लेकिन पारंपरिक संगीत, सुर और राग के साथ आधुनिकता का मिश्रण भी उन्हें स्वीकार्य था।





चटर्जी ने कहा, "वह कोई भी नया सुर, नया राग, नई बोली बहुत जल्दी सीखते थे, ऐसा नहीं होता तो कई सारी भाषाओं में उनके गीत नहीं होते।" मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मुकेश और हेमंत मुखोपाद्ययाय जैसे गायकों के समकालीन मन्ना डे ने हमेशा अपनी गायकी के स्तर को बनाए रखा। चटर्जी बताते हैं कि मन्ना सिर्फ काम और संगीत के क्षेत्र में ही अनुशासनप्रिय नहीं थे बल्कि निजी जिंदगी में भी वह काम और समय के बेहद पाबंद थे। वह रोज सुबह पांच बजे उठते थे, नित्यकर्म से निबटकर व्यायाम के लिए जाते थे, वापस आकर सुबह की चाय बनाते थे और फिर अपनी पत्नी को जगाते थे।


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