...इसलिए धनतेरस को करते हैं दीपदान



कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस
दिन मृत्यु के देवता यमराज का पूजन किए जाने का विधान है। धनतेरस पर यमराज
के निमित्त व्रत भी रखा जाता है। इस दिन सायंकाल घर के बाहर मुख्य दरवाजे
पर एक पात्र में अन्न रखकर उसके ऊपर यमराज के निर्मित्त दक्षिण की ओर मुंह
करके दीपदान करते हैं|



आज हम आपको बताते हैं आखिर क्यों हम करते हैं यमराज को दीपदान| एक बार की
बात है, भगवान विष्णु माता लक्ष्मीजी सहित पृथ्वी पर घूमने आए। कुछ देर बाद
भगवान विष्णु लक्ष्मीजी से बोले कि मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं। तुम
यहीं ठहरो। परंतु लक्ष्मीजी भी विष्णुजी के पीछे चल दीं। कुछ दूर चलने पर
ईख (गन्ने) का खेत मिला। लक्ष्मीजी एक गन्ना तोड़कर चूसने लगीं। भगवान लौटे
तो उन्होंने लक्ष्मीजी को गन्ना चूसते हुए पाया। इस पर वह क्रोधित हो उठे।
उन्होंने श्राप दे दिया कि तुम जिस किसान का यह खेत है उसके यहां पर 12
वर्ष तक उसकी सेवा करो।



विष्णु भगवान क्षीर सागर लौट गए तथा लक्ष्मीजी ने किसान के यहां रहकर उसे
धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। 12वर्ष के बाद लक्ष्मीजी भगवान विष्णु के पास
जाने के लिए तैयार हो गईं परंतु किसान ने उन्हें जाने नहीं दिया। भगवान
विष्णुजी लक्ष्मीजी को बुलाने आए परंतु किसान ने उन्हें रोक लिया। तब भगवान
विष्णु बोले कि तुम परिवार सहित गंगा स्नान करने जाओ और इन कौड़ियों को भी
गंगाजल में छोड़ देना तब तक मैं यहीं रहूंगा। किसान ने ऐसा ही किया।
गंगाजी में कौडि़यां डालते ही चार हाथ बाहर निकले और कौडि़यां लेकर चलने को
तैयार हुए। ऐसा आश्चर्य देखकर किसान ने गंगाजी से पूछा कि ये चार हाथ
किसके हैं। गंगाजी ने किसान को बताया कि ये चारों हाथ मेरे ही थे। तुमने जो
मुझे कौडि़यां भेंट की हैं। वे तुम्हें किसने दी हैं।



किसान बोला कि मेरे घर पर एक स्त्री और पुरुष आए हैं। तभी गंगाजी बोलीं कि
वे देवी लक्ष्मीजी और भगवान विष्णु हैं। तुम लक्ष्मीजी को मत जाने देना।
वरना दोबारा निर्धन हो जाओगे। किसान ने घर लौटने पर देवी लक्ष्मीजी को नहीं
जाने दिया। तब भगवान ने किसान को समझाया कि मेरे श्राप के कारण लक्ष्मीजी
तुम्हारे यहां 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही हैं। फिर लक्ष्मीजी चंचल
हैं। इन्हें बड़े-बड़े नहीं रोक सके। तुम हठ मत करो। फिर लक्ष्मीजी बोलीं
हे किसान यदि तुम मुझे रोकना चाहते हो तो कल धनतेरस है। तुम अपने घर को
साफ-सुथरा रखना। रात में घी का दीपक जलाकर रखना। मैं तुम्हारे घर आउंगी।
तुम उस वक्त मेरी पूजा करना। परंतु मैं अदृश्य रहूंगी। किसान ने देवी
लक्ष्मीजी की बात मान ली और लक्ष्मीजी द्वारा बताई विधि से पूजा की। उसका
घर धन से भर गया।



इस प्रकार किसान प्रति वर्ष लक्ष्मीजी को पूजने लगा तथा अन्य लोग भी देवी
लक्ष्मीजी का पूजन करने लगे। इस दिन घर के टूटे-फूटे पुराने बर्तनों के
बदले नये बर्तन खरीदे जाते हैं। इस दिन चांदी के बर्तन खरीदना अत्यधिक शुभ
माना जाता है। इन्हीं बर्तनों में भगवान गणेश और देवी लक्ष्मीजी की
मूर्तियों को रखकर पूजा की जाती है। इस दिन लक्ष्मीजी की पूजा करते समय
'यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये धन-धान्य समृद्ध में देहि दापय
स्वाहा' का स्मरण करके फूल चढ़ाये। इसके पश्चात कपूर से आरती करें। इस समय
देवी लक्ष्मीजी, भगवान गणेशजी और जगदीश भगवान की आरती करे। धनतेरस के ही
दिन देवता यमराज की भी पूजा होती है।



यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है। रात्रि में
महिलाएं दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाती हैं। जल, रोली, चावल, गुड़
और फूल आदि मिठाई सहित दीपक जलाकर पूजा की जाती है। यम दीपदान को धनतेरस
की शाम में तिल के तेल से युक्त दीपक प्रज्वलित करें। इसके पश्चात गंध,
पुष्प, अक्षत से पूजन कर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके यम से निम्न
प्रार्थना करें। मृत्युना दंडपाशाभ्याम्घ्कालेन यामया सह।



त्रयोदश्यां दीपदानात्घ्सूर्यज: प्रयतां मम। अब उन दीपकों से यम की
प्रसन्नतार्थ सार्वजनिक स्थलों को प्रकाशित करें। इसी प्रकार एक अखंड दीपक
घर के प्रमुख द्वार की देहरी पर किसी प्रकार का अन्न (साबुत गेहूं या चावल
आदि)बिछाकर उस पर रखें।



देवता यमराज के लिये भी एक लोकप्रिय कथा है। एक बार यमदूतों ने यमराज को
बताया कि महाराज अकाल मृत्यु से हमारे मन भी पसीज जाते हैं। यमराज ने
द्रवित होकर कहा कि क्या किया जाए विधि के विधान की मर्यादा हेतु हमें ऐसा
अप्रिय कार्य करना ही पड़ता है। यमराज ने अकाल मृत्यु से बचाव के उपाय
बताते हुए कहा कि धनतेरस के दिन पूजन एवं दीपदान को विधिपूर्वक करने से
अकाल मृत्यु से छुटकारा मिल जाता है। जहां-जहां और जिस-जिस घर में यह पूजन
होता है वहां अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। इसी घटना से धनतेरस के दिन
धनवंतरि पूजन सहित यमराज को दीपदान की प्रथा का भी प्रचलन हुआ।





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