खागा क्षेत्र में भी मिल सकता है खजाना!



उत्तर प्रदेश में आदमपुर के पुरातात्विक स्थल पर अकूत संपदा की बात सामने
आने के बाद तहसील क्षेत्र के पुरातात्विक स्थल भी चर्चा का विषय बन गया है।
पुरातत्व विभाग की उपेक्षा के शिकार ऐसे स्थानों के प्रति जहां धन के
लालची तांत्रिक सक्रिय हो गए हैं, वहीं स्थानीय ग्रामीणों का कौतूहल भी
जाग्रत हो गया है।



खागा कस्बे के करीब स्थित कुकरा कुकरी ऐलई ग्राम का टीला तथा टिकरी गांव का
टीला इन दिनों जिज्ञासु लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। इन स्थानों
पर लोगों की चहल कदमी बढ़ गई है, जबकि कुछ ऐसे विवादास्पद स्थानों के प्रति
भी लोग आकर्षित हुए हैं जिन्हें लोगों ने अपना कब्जा जमा रखा है।



जनपद मुख्यालय के भिटौरा ब्लॉक अंर्तगत गंगा तट पर स्थित आदमपुर गांव में
सोने का खजाना दबे होने की चर्चा ने क्षेत्र के पुरातात्विक महत्व के
स्थानों का जनाकर्षण बढ़ा दिया है। लोगों के बीच ऐसे स्थान चर्चा के विषय
बने हुए हैं।



लोगों का कहना है कि ऐतिहासिक घटनाओं या प्राकृतिक आपदाओं से भूगर्भ में
समा चुके पुराने वैभव का समाज व राष्ट्रहित में उपयोग के प्रति संत शोभन
सरकार की पहल पर सरकार की सक्रियता को प्रशासन विस्तार दे दे तो खागा की
सरजमीं भी देश का भाग्य बदलने में सहायक साबित हो सकती है।



जनचर्चा के अनुसार, नगर के संस्थापक राजा खड़क सिंह के इतिहास से जुड़ा
कुकरा कुकरी स्थल में भी अकूत भू-संपदा होने की संभावना है। इस स्थान को
लेकर लंबे समय तक सक्रिय रहे पत्रकार सुमेर सिंह का कहना है कि इस टीले के
आसपास के ग्रामीणों को कई मर्तबा बहुमूल्य नगीने पत्थर व सिक्के हाथ लगे
हैं। इनका कहना है कि टीले की थोड़ी बहुत खुदाई उन्हांेने करा दी थी,
जिसमंे कतिपय भग्नावशेष उनके हाथ लगे थे। बताया कि इस बारे मे उन्होंने
पुरातत्व विभाग को पत्र भी लिखा था लेकिन कोई जवाब न मिलने के कारण निराश
हो कर बैठ गए।



अब जबकि आदमपुर के खजाने की बात सामने आ गई है, इन दिनों उस स्थान पर लोगों
की चहल कदमी बढ़ गई है। प्राचीन धरोहरों और सामानों के शौकीन कुंवर लाल
रामेंद्र सिंह के अनुसार, इस स्थान के चक्कर लगाते हुए उन्हें कई बार ऐसे
तांत्रिक भी मिले हैं, जिन्होंने टीले के अंदर बहुमूल्य संपदा होने के का
दावा किया है।



फिलहाल इन दिनों इस स्थान पर धनाकांक्षी लोगांे की चहल पहल बढ़ गई है। नहर
किनारे रहने वाले ग्रामीणों ने बताया कि आजकल शाम को कुछ लोग टीले के आसपास
मंडराते देखे जाते हैं। नगर के दक्षिण-पूर्व सीमा के बाहर ऐलई गांव के
पहले प्रवेश मार्ग के पास जिस टीले पर माइक्रो टावर लगा है, वह भी इस समय
चर्चा में शुमार है।



बताते हैं कि सन् 1984 में जब टावर लगाने के लिए टीले की सतही की खुदाई हुई
थी, उस समय भारी मात्रा में चांदी व ताबे के सिक्के निकले थे। अरबी भाषा
की लिखाई वाले ये सिक्के कुछ ग्रामीणों के हाथ भी लगे थे, लेकिन डर और लोभ
की वजह से लोगों ने सिक्कों के बाबत चुप्पी साध ली। लगभग 200 वर्ग मीटर के
क्षेत्र में फैले इस टीले के आसपास अब आबादी बढ़ जाने के बावजूद रात मे
टीले का वातावरण रहस्यमय रहता है, ग्रामीण भी टीले में जाने से भय खाते
हैं। 





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