...तो इसीदिन भगवान श्रीकृष्ण ने रचाया था गोपियों संग रास



आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इसे रास पूर्णिमा भी कहा
जाता है ऐसा इसलिए क्योंकि शरद पूर्णिमा की रात को ही भगवान श्रीकृष्ण ने
गोपियों के साथ रास रचाया था। यूं तो हर माह में पूर्णिमा आती है लेकिन शरद
पूर्णिमा का महत्व उन सभी से कहीं अधिक है। हिंदू धर्म ग्रंथों में भी इस
पूर्णिमा को विशेष बताया गया है। इस बार शरद पूर्णिमा 18 अक्टूबर, शुक्रवार
को है।



पौराणिक मान्यताएं एवं शरद ऋतु, पूर्णाकार चंद्रमा, संसार भर में उत्सव का
माहौल। इन सबके संयुक्त रूप का यदि कोई नाम या पर्व है तो वह है 'शरद
पूनम'। वह दिन जब इंतजार होता है रात्रि के उस पहर का जिसमें 16 कलाओं से
युक्त चंद्रमा अमृत की वर्षा धरती पर करता है। वर्षा ऋतु की जरावस्था और
शरद ऋतु के बाल रूप का यह सुंदर संजोग हर किसी का मन मोह लेता है। सम्पूर्ण
वर्ष में आश्विन मास की पूर्णिमा का चन्द्रमा ही षोडस कलाओं का होता है।
शरद पूर्णिमा से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन
चंद्रमा की किरणें विशेष अमृतमयी गुणों से युक्त रहती हैं जो कई बिमारियों
का नाश कर देती हैं।



आपको बता दें की एक यह भी मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी रात्रि में यह
देखने के लिए घूमती हैं कि कौन जाग रहा है और जो जाग रहा है महालक्ष्मी
उसका कल्याण करती हैं तथा जो सो रहा होता है वहां महालक्ष्मी नहीं ठहरतीं।
शरद पूर्णिमा के बाद से मौसम में परिवर्तन की शुरुआत होती है और शीत ऋतु का
आगमन होता है।



कहते हैं कि इस दिन चन्द्रमा अमृत की वर्षा करता है। शरद पूर्णिमा के दिन
शाम को खीर, पूरी बनाकर भगवान को भोग लगाएँ । भोग लगाकर खीर को छत पर रख
दें और रात को भगवान का भजन करें। चाँद की रोशन में सुईं पिरोएँ । अगले दिन
खीर का प्रसाद सबको देना चाहिए ।



इस दिन प्रात:काल आराध्य देव को सुन्दर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करें ।
आसन पर विराजमान कर गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेध, ताम्बूल, सुपारी,
दक्षिणा आदि से पूजा करनी चाहिए| सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर घी के 100
दीपक जलाए। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में
वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस
समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं
आज धन दूंगी। इस प्रकार यह शरद पूर्णिमा, कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को
संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं मां लक्ष्मी इस लोक में तो
समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान
करती हैं।






www.pardaphash.com



Post a Comment

Previous Post Next Post