क्या नेताओं को भी एक निश्चित उम्र के बाद सेवानिवृत्त हो जाना चाहिए? सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद जनप्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराने के बाद छात्रों, युवा पेशेवरों और कारोबारियों के बीच इस सवाल का उत्तर हां है।
चिकित्सा पेशे से जुड़े ए. हैरिस ने कहा, "हां, हर लिहाज से, चुनावी राजनीति के लिए सेवानिवृत्ति की उम्र तय की जानी चाहिए और जितनी जल्दी यह काम हो जाए उतना ही अच्छा रहेगा।" उन्होंने कहा कि बुजुर्गो में मतिभ्रम और दिमाग से संबंधित क्षीणता (बेकार होना या आकार में कम होना) आम बात है।
सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले महीने व्यवस्था दी कि किसी भी अदालत से दोषी करार दिए जाने के बाद जनप्रतिनिधि को अयोग्य करार दिया जाए भले ही संबंधित जनप्रतिनिधि की अपील ऊपर की अदालत में लंबित क्यों न हो। ऐसे नेता को छह वर्षो तक चुनाव लड़ने से भी प्रतिबंधित किया जाए।
इस फैसले के बाद कांग्रेस के राज्यसभा सांसद रशीद मसूद ऐसे पहले जनप्रतिनिधि हैं जिन्हें अपनी सदस्यता खोनी पड़ेगी। उन्हें भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराया गया है। इसके बाद पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में दोषी ठहराए गए। सेंटर फॉर डेवलपमैंट के काम करने वाले जे. मुरलीधरन ने हालांकि कहा कि राजनीति कोई पेशा नहीं है, बल्कि सेवा है। अत: किसी के दिमागी रूप से और शारीरिक रूप से स्वस्थ होने पर उम्र कोई मुद्दा नहीं रह जाता।
राज्य सरकार के कर्मचारी 56 वर्ष की उम्र होने पर सेवानिवृत्त हो जाते हैं, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र में 58 और केंद्र सरकार के कर्मचारी 60 वर्ष की उम्र होने पर सेवा से मुक्त हो होते हैं। एक पेशेवर पाठ्यक्रम के छात्र जी. एस. विवेक ने कहा, "जब सभी की सेवानिवृत्ति की उम्र होती है तो नेताओं की भी उम्र तय होनी चाहिए। हम बार-बार एक ही चेहरे को देखते रहते हैं।" उन्होंने कहा, "बदलाव का सदैव स्वागत है।"
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