लौहपुरूष सरदार वल्लभभाई पटेल की जयन्ती पर विशेष........



आज हम जिस विशाल भारत को देखते हैं उसकी कल्पना लौह पुरुष कहलाने वाले
सरदार वल्लभ भाई पटेल के बिना शायद पूरी नहीं हो पाती| वल्लभ भाई पटेल एक
ऐसे इंसान थे जिन्होंने देश के छोटे-छोटे रजवाड़ों और राजघरानों को एककर
भारत में सम्मिलित किया| भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जब भी बात होती है
तो सरदार पटेल का नाम सबसे पहले ध्यान में आता है| उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति,
नेतृत्व कौशल का ही कमाल था कि 600 देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय
कर सके| भारत के प्रथम गृह मंत्री और प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ
भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में उनके ननिहाल
में हुआ| वह खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई पटेल की चौथी
संतान थे| वल्लभ भिया पटेल की माता का नाम लाडबा पटेल था| बचपन से ही उनके
परिवार ने उनकी शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया| प्रारंभिक शिक्षा काल में ही
उन्होंने एक ऐसे अध्यापक के विरुद्ध आंदोलन खड़ाकर उन्हें सही मार्ग दिखाया
जो अपने ही व्यापारिक संस्थान से पुस्तकें क्रय करने के लिए छात्रों के
बाध्य करते थे। हालाँकि 16 साल में उनका विवाह कर दिया गया था पर उन्होंने
अपने विवाह को अपनी पढ़ाई के रास्ते में नहीं आने दिया| 22 साल की उम्र में
उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और ज़िला अधिवक्ता की परीक्षा
पास की, जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिली| अपनी वकालत के दौरान
उन्होंने कई बार ऐसे केस लड़े जिसे दूसरे निरस और हारा हुए मानते थे| उनकी
प्रभावशाली वकालत का ही कमाल था कि उनकी प्रसिद्धी दिनों-दिन बढ़ती चली गई|
गम्भीर और शालीन पटेल अपने उच्चस्तरीय तौर-तरीक़ों और चुस्त अंग्रेज़ी
पहनावे के लिए भी जाने जाते थे| लेकिन गांधीजी के प्रभाव में आने के बाद
जैसे उनकी राह ही बदल गई|



भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जब पूरी शक्ति से अंग्रेजों भारत
छोड़ो आंदोलन चलाने का निश्चय किया तो सरदार पटेल ने अहमदाबाद में एक लाख
जन-समूह के सामने लोकल बोर्ड के मैदान में इस आंदोलन की रूपरेखा समझाई। लौह
पुरुष कहे जाने वाले सरदार बल्लभ भाई पटेल ने पत्रकार परिषद में कहा, ऐसा
समय फिर नही आएगा, आप मन में भय न रखें। चौपाटी पर दिए गए भाषण में कहा,
आपको यही समझकर यह लड़ाई छेड़नी है कि महात्मा गांधी और अन्य नेताओं को
गिरफ्तार कर लिया जाएगा तो आप न भूलें कि आपके हाथ में शक्ति है कि 24 घंटे
में ब्रिटिश सरकार का शासन खत्म हो जाएगा।



सितंबर, 1946 में जब पंडित जवाहर लाल नेहरु की अस्थाई राष्ट्रीय सराकर बनी
तो सरदार पटेल को गृहमंत्री नियुक्त किया गया। अत्यधिक दूरदर्शी होने के
कारण भारत मे विभाजन के पक्ष में पटेल का स्पष्ट मत था कि जहरवाद फैलने से
पूर्व गले-से अंग को ऑपरेशन कर कटवा देना चाहिए। नवंबर,1947 में संविधान
परिषद की बैठक में उन्होंने अपने इस कथन को स्पष्ट किया, मैंने विभाजन को
अंतिम उपाय मे रूप में तब स्वीकार किया था जब संपूर्ण भारत के हमारे हाथ से
निकल जाने की संभावना हो गई थी। मैंने यह भी शर्त रखी कि देशी राज्यों के
संबंध में ब्रिटेन हस्तक्षेप नहीं करेगा। इस समस्या को हम सुलझाएंगे। और
निश्चय ही देशी राज्यों के एकीकरण की समस्या को पटेल ने बिना खून-खराबे के
बड़ी खूबी से हल किया, देशी राज्यों में राजकोट, जूनागढ़, वहालपुर, बड़ौदा,
कश्मीर, हैदराबाद को भारतीय महासंघ में सम्मिलित करना में सरदार को कई
पेचीदगियों का सामना करना पड़ा।



भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इसे भारतीय प्रशासनिक
सेवाएं (आई.ए.एस.) में परिवर्तित करना सरदार पटेल के प्रयासो का ही परिणाम
है। यदि सरदार पटेल को कुछ समय और मिलता तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण
कायाकल्प हो जाता। उनके मन में किसानो एवं मजदूरों के लिये असीम श्रद्धा
थी। वल्लभभाई पटेल ने किसानों एवं मजदूरों की कठिनाइयों पर अन्तर्वेदना
प्रकट करते हुए कहा:-



” दुनिया का आधार किसान और मजदूर पर हैं। फिर भी सबसे ज्यादा जुल्म कोई
सहता है, तो यह दोनों ही सहते हैं। क्योंकि ये दोनों बेजुबान होकर अत्याचार
सहन करते हैं। मैं किसान हूँ, किसानों के दिल में घुस सकता हूँ, इसलिए
उन्हें समझता हूँ कि उनके दुख का कारण यही है कि वे हताश हो गये हैं। और यह
मानने लगे हैं कि इतनी बड़ी हुकूमत के विरुद्ध क्या हो सकता है ? सरकार के
नाम पर एक चपरासी आकर उन्हें धमका जाता है, गालियाँ दे जाता है और बेगार
करा लेता है। “



किसानों की दयनीय स्थिति से वे कितने दुखी थे इसका वर्णन करते हुए पटेल ने कहा: -



“किसान डरकर दुख उठाए और जालिम की लातें खाये, इससे मुझे शर्म आती है और
मैं सोचता हूँ कि किसानों को गरीब और कमजोर न रहने देकर सीधे खड़े करूँ और
ऊँचा सिर करके चलने वाला बना दूँ। इतना करके मरूँगा तो अपना जीवन सफल
समझूँगा”



कहते हैं कि यदि सरदार बल्लभ भाई पटेल ने जिद्द नहीं की होती तो ‘रणछोड़’
राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति पद के लिए तैयार ही नहीं होते। जब सरदार
वल्‍लभभाई पटेल अहमदाबाद म्‍युनिसिपेलिटी के अध्‍यक्ष थे तब उन्‍होंने बाल
गंगाघर तिलक का बुत अहमदाबाद के विक्‍टोरिया गार्डन में विक्‍टोरिया के
स्‍तूप के समान्‍तर लगवाया था। जिस पर गाँधी जी ने कहा था कि- “सरदार पटेल
के आने के साथ ही अहमदाबाद म्‍युनिसिपेलिटी में एक नयी ताकत आयी है। मैं
सरदार पटेल को तिलक का बुत स्‍थापित करने की हिम्‍मत बताने के लिये उन्हे
अभिनन्‍दन देता हूं।”



सरदार पटेल को कई बार जाना पड़ा जेल-



भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में पटेल, गांधी के
बाद अध्यक्ष पद के दूसरे उम्मीदवार थे। गांधी ने स्वाधीनता के प्रस्ताव को
स्वीकृत होने से रोकने के प्रयास में अध्यक्ष पद की दावेदारी छोड़ दी और
पटेल पर भी नाम वापस लेने के लिए दबाव डाला। इसका प्रमुख कारण मुसलमानों के
प्रति पटेल की हठधर्मिता थी। अंतत: जवाहरलाल नेहरू अध्यक्ष बने। 1930 में
नमक सत्याग्रह के दौरान पटेल को तीन महीने की जेल हुई। मार्च 1931 में पटेल
ने इंडियन नेशनल कांग्रेस के करांची अधिवेशन की अध्यक्षता की। जनवरी 1932
में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। जुलाई 1934 में वह रिहा हुए और 1937 के
चुनावों में उन्होंने कांग्रेज़ पार्टी के संगठन को व्यवस्थित किया।
1937-38 में वह कांग्रेस के अध्यक्ष पद के प्रमुख दावेदार थे। एक बार फिर
गांधी के दबाव में पटेल को अपना नाम वापस लेना पड़ा और जवाहर लाल नेहरू
निर्वाचित हुए। अक्टूबर 1940 में कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ पटेल भी
गिरफ़्तार हुए और अगस्त 1941 में रिहा हुए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान,
जब जापानी हमले की आशंका हुई, तो पटेल ने गांधी की अहिंसा की नीति को
अव्यावहारिक बताकर ख़ारिज कर दिया। सत्ता के हस्तान्तरण के मुद्दे पर भी
पटेल का गांधी से इस बात पर मतभेद था कि उपमहाद्वीप का हिन्दू भारत तथा
मुस्लिम पाकिस्तान के रूप में विभाजन अपरिहार्य है। पटेल ने ज़ोर दिया कि
पाकिस्तान दे देना भारत के हित में है।



माना जाता है पटेल कश्मीर को भी बिना शर्त भारत से जोड़ना चाहते थे पर
जवाहर लाला नेहरु ने हस्तक्षेप कर कश्मीर को विशेष दर्जा दे दिया| नेहरू ने
कश्मीर के मुद्दे को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक
अंतरराष्ट्रीय समस्या है| यदि कश्मीर का निर्णय नेहरू की बजाय पटेल के हाथ
में होता तो कश्मीर आज भारत के लिए समस्या नहीं बल्कि गौरव का विषय होता|
15 दिसंबर 1950 को प्रातःकाल 9.37 पर इस महापुरुष का 76 वर्ष की आयु में
निधन हो गया| 





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