लोहड़ी: प्रेम-सौहार्द का पर्व



लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है। हिन्दू पंचांग के अनुसार,
लोहड़ी मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाई जाती है और इस बार लोहड़ी का
पर्व 13 जनवरी दिन सोमवार को मनाया जा रहा है| लोहड़ी को सूर्य के दक्षिणायन
से उत्तरायण में आने का स्वागत पर्व भी माना जाता है। पंजाब, हरियाणा,
दिल्ली, हिमाचल एवं कश्मीर में इस त्यौहार की सबसे ज्यादा धूम रहती है।



लोहड़ी से 20 से 25 दिन पहले ही बालक एवं बालिकाएँ 'लोहड़ी' के लोकगीत गाकर
लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। संचित सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के
किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है। मुहल्ले या गाँव भर के लोग अग्नि के
चारों ओर आसन जमा लेते हैं। घर और व्यवसाय के कामकाज से निपटकर प्रत्येक
परिवार अग्नि की परिक्रमा करता है। रेवड़ी अग्नि की भेंट किए जाते हैं तथा
ये ही चीजें प्रसाद के रूप में सभी उपस्थित लोगों को बाँटी जाती हैं। घर
लौटते समय 'लोहड़ी' में से दो चार दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में, घर पर
लाने की प्रथा भी है।



लोहड़ी के दिन सुबह से ही बच्चे घर–घर जाकर गीत गाते हैं तथा प्रत्येक घर से
लोहड़ी माँगते हैं। यह कई रूपों में उन्हें प्रदान की जाती है। जैसे तिल,
मूँगफली, गुड़, रेवड़ी व गजक। पंजाबी रॉबिन हुड दूल्हा भट्टी की प्रशंसा
में गीत गाते हैं। कहते हैं कि दुल्ला भट्टी एक लुटेरा हुआ करता था लेकिन
वह हिंदू लड़कियों को बेचे जाने का विरोधी था और उन्हें बचा कर वह उनकी
हिंदू लड़कों से शादी करा देता था इस कारण लोग उसे पसंद करते थे और आज भी
लोहड़ी गीतों में उसके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है|



हिन्दू शास्त्रों में यह मान्यता है कि लोहड़ी के दिन इस आग में जो भी
समर्पित किया जाता है वह सीधे हमारे देवों-पितरों को जाता है| इसलिए जब
लोहड़ी जलाई जाती है तो उसकी पूजा गेहूं की नयी फसल की बालियों से की जाती
है| लोहडी के दिन अग्नि को प्रजव्व्लित कर उसके चारों ओर नाच-गाकर शुक्रिया
अदा किया जाता है|



यूं तो लोहडी उतरी भारत में प्रत्येक वर्ग, हर आयु के जन के लिये खुशियां
लेकर आती है| परन्तु नवविवाहित दम्पतियों और नवजात शिशुओं के लिये यह दिन
विशेष होता है| युवक -युवतियां सज-धज, सुन्दर वस्त्रों में एक-दूसरे से
गीत-संगीत की प्रतियोगिताएं रखते है| लोहडी की संध्यां में जलती लकडियों के
सामने नवविवाहित जोडे अपनी वैवाहिक जीवन को सुखमय व शान्ति पूर्ण बनाये
रखने की कामना करते है| सांस्कृतिक स्थलों में लोहडी त्यौहार की तैयारियां
समय से कुछ दिन पूर्व ही आरम्भ हो जाती है|



क्यों मनाई जाती है लोहड़ी-



कंस सदैव बालकृष्ण को मारने के लिए नित नए प्रयास करता रहता था। एक बार जब
सभी लोग मकर संक्रांति का पर्व मनाने में व्यस्थ थे कंस ने बालकृष्ण को
मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में भेजा था, जिसे बालकृष्ण ने
खेल-खेल में ही मार डाला था। लोहिता नामक राक्षसी के नाम पर ही लोहड़ी
उत्सव का नाम रखा। उसी घटना की स्मृति में लोहड़ी का पावन पर्व मनाया जाता
है।



लोहड़ी पर गिद्दा व भांगड़ा की धूम



लोहडी़ के पर्व पर लोकगीतों की धूम मची रहती है, चारों और ढोल की थाप पर
भंगड़ा-गिद्दा करते हुए लोग आनंद से नाचते नज़र आते हैं| लोहडी के दिन में
भंगडे की गूंज और शाम होते ही लकडियां की आग और आग में डाले जाने वाले
खाद्धानों की महक एक गांव को दूसरे गांव व एक घर को दूसरे घर से बांधे रखती
है| यह सिलसिला देर रात तक यूं ही चलता रहता है| बडे-बडे ढोलों की थाप,
जिसमें बजाने वाले थक जायें, पर पैरों की थिरकन में कमी न हों, रेवडी और
मूंगफली का स्वाद सब एक साथ रात भर चलता रहता है|



पौष की विदाई और माघ का आगमन-



लोहडी पर्व मकर संक्रान्ति से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है तथा इस
त्यौहार का सीधा संबन्ध सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से होता है| लोहड़ी
पौष की आख़िरी रात को मनायी जाती है जो माघ महीने के शुभारम्भ व उत्तरायण
काल का शुभ समय के आगमन को दर्शाता है और साथ ही साथ ठंड को दूर करता हुआ
मौसम में बदलाव का संकेत बनता है|


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