मध्य प्रदेश के सतना जिले के मैहर में स्थित प्रसिद्ध शारदा देवी मंदिर पर जल भराव, अंधाधुंध निर्माण और बढ़ते यातायात के दवाब के कारण संकट के बादल मंडराने लगे हैं। यह खुलासा हुआ है सूचना के अधिकार के तहत हासिल की गई जानकारी से । विंध्यांचल पर्वत श्रंखला की ऊंची पहाड़ी पर स्थित यह ऐसा ऐतिहासिक मंदिर है, जहां हर वर्ष 50 लाख से ज्यादा श्रद्धालु दर्शन को आते हैं। मान्यता है कि यहां की गई कामना पूरी होती है। यहां आने वालों में राज्य और राज्य के बाहर के श्रद्धालु भी शामिल हैं।
ऐतिहासिक मंदिर संकट के दौर से गुजर रहा है, क्योंकि पहाड़ी पर स्थित मंदिर का सुरक्षा कवच जंगल लगातार कम हो रहा है, वहीं निर्माण कार्यों के चलते पहाड़ी पर वजन बढ़ रहा है। इतना ही नहीं मिट्टी का क्षरण होने के साथ पानी का भराव भी होता है। ये स्थितियां केंद्रीय भवन शोध संस्थान(सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीटयूट) रुड़की ने एक अध्ययन के दौरान 1993 में पाई थी।
रुड़की के शोध संस्थान द्वारा किया गया अध्ययन उन लाखों श्रद्धालुओं की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है जो हर वर्ष यहां माता के दर्शन करने आते हैं। इस अध्ययन के तथ्य सूचना के अधिकार के जरिए सामने आए हैं। सूचना के अधिकार के तहत जानकारी हासिल करने वाले अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा का कहना है कि शारदा माता मंदिर पर गहराए संकट का खुलासा रुड़की के अध्ययन से हुआ है। वह बताते हैं कि इस अध्ययन मंे कहा गया है कि पहाड़ी पर कई स्थानों पर ढाल बन गए हैं और कई स्थानों पर मिट्टी भी धंस रही है। पहाड़ी की ढलान पर लगे कुछ पेड़ों का झुकना भी इस बात का संकेत है कि कुछ हलचल है।
अध्ययन यह भी कहता है कि निर्माण कार्यों के दौरान लोक निर्माण विभाग की राय को भी नजर अंदाज किया गया है। इनता ही नहीं मंदिर के आसपास जो निर्माण किए गए हैं, उनमे भी दरारें उभरी हैं। जो चटटानों के खिसकने का संकेत है।
माता का मंदिर विंध्य पर्वत श्रृंखला की पहाड़ी पर लगभग 646 फुट की उंचाई पर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए घुमावदार चार किलोमीटर लम्बी सड़क बनाई गई है और सीढ़ियां भी हैं। यहां महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि मंदिर प्रबंधक समिति (एसपीएस) ने ही यह अध्ययन कराया था, मगर इससे कोई सीख नहीं ली गई है। साथ ही कोई एहतियाती कदम भी नहीं उठाए गए हैं।
मिश्रा का कहना है कि रुड़की के अध्ययन के नतीजों से कोई सीख लेकर सुरक्षा के इंतजाम करना तो दूर नए निर्माण कार्यों का सिलसिला बदस्तूर जारी है। उनका कहना है कि एक तरफ पहाड़ी में बढ़ता मिट्टी का क्षरण व अन्य स्थितियां अंदेशे का आभास करा रही हैं तो दूसरी ओर मंदिर की पहाड़ी से पांच से 10 किलो मीटर की परिधि में जारी खनन भी खतरा बना हुआ है।
अध्ययन के निष्कर्षो को राज्य सरकार भी नजरअंदाज कर रही है। मंदिर प्रबंधन समिति और राज्य सरकार के रवैए से निराश अधिवक्ता मिश्रा ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय जाने का मन बनाया है। मंदिर के प्रशासक के. बी. एस. चौधरी पहाड़ी के ऊपरी हिस्से पर अतिरिक्त निर्माण कार्य कराए जाने से इंकार करते हैं। उनका कहना है कि पहाड़ी के ऊपरी हिस्से पर मंदिर के अलावा कोई निर्माण कार्य नहीं हुआ है। साथ ही उनका कहना है कि यह रिपोर्ट पुरानी है और जल निकासी के प्रबंध किए गए हैं, लिहाजा मंदिर को कोई खतरा नहीं है।
दूसरी ओर सूत्रों का कहना है कि प्रशासन की ओर से मंदिर क्षेत्र में अतिक्रमण कर बनाई गई कई दुकानों के संचालकों को नोटिस जारी किए गए हैं।
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सुंदर जानकारी !
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति गुरुवारीय चर्चा मंच पर ।।
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