बच्चों में जल्द आ रहा यौवन, माता-पिता की चिंता बढ़ी




ख्याति खन्ना (बदला हुआ नाम) उम्र के लिहाज से अभी 10 वर्ष के कच्चे पड़ाव
पर हैं, लेकिन अपने शरीर में अचानक आ रहे परिवर्तन के कारण उसने स्कूल जाने
से इनकार कर दिया है, यहां तक कि वह पूरे दिन घर के अंदर ही रहना चाहती है
तथा दोस्तों और परिवार के लोगों से भी दूर-दूर ही रहना चाहती है। ख्याति
की मां ने बताया, "अपनी उम्र से अधिक दिखाई पड़ना शुरू होने, उभरते स्तनों
और इतनी कम उम्र में आ रहे यौवन के कारण वह शरमाई सकुचाई-सी रहने लगी है।
पहले की अपेक्षा चिड़चिड़ी, आक्रामक और अत्यधिक गुस्सैल रहने लगी है।"



उन्होंने आगे बताया, "जब मैंने उससे पूछा तो उसका कहना था कि जब उसकी उम्र
के दूसरे बच्चों में यह सब नहीं हो रहा, तो उसमें क्यों। मेरे पास इसका कोई
जवाब नहीं है। यह बहुत ही चिंताजनक है। एक मां के स्तर पर मुझे उससे बात
करने में बहुत मुश्किल होती है।"



विशेषज्ञों का कहना है कि ख्याति का मामला बहुत अलहदा नहीं है। धीरे-धीरे
आठ से 10 वर्ष की आयुवर्ग की बच्चियों में जल्द तरुणाई आने के मामले बढ़ते
जा रहे हैं। चिकित्साशास्त्रियों का कहना है कि इस उम्र में बच्चों के
स्वभाव में आक्रामकता, उत्तेजना एवं तेजी से मनोभाव बदलने के लक्षणों को
तरुणाई आने की प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकता है।



चंडीगढ़ के परास्नातक चिकित्सा विज्ञान शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान
(पीजीआईएमईआर) में प्राध्यापक आदर्श कोहली ने कहा, "दुर्भाग्य से यह सच है।
आक्रामकता, उत्तेजना एवं मनोभावों में तेज बदलाव पहले जहां किशोरियों में
पाया जाता था, अब आठ से 10 वर्ष की बच्चियों में देखा जाने लगा है।"
उन्होंने तरुणाई आने की उम्र घटने की बात स्वीकार की।



पीजीआईएमईआर द्वारा किए गए एक अध्ययन का हवाला देते हुए आदर्श ने बताया कि
आठ से 10 वर्ष की बच्चियों में जल्द यौवन आने के लक्षण पाए गए। यह अध्ययन
चार से 12 वर्ष के 400 बच्चों पर किया गया है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान
संस्थान के मनोरोग विभाग में नैदानिक मनोचिकित्सक मंजू मेहता के अनुसार,
यौवन आने के उम्र में आई कमी चिंता का विषय है और परिजनों को ज्यादा
समझदारी से काम लेना होगा।



इस तरह के मामलों में मीडिया और टीवी की संभावित भूमिका पर मंजू ने कहा,
"टेलीविजन पर बच्चों के लिए विशेष तौर पर तैयार किए गए कार्यक्रमों एवं
खबरों का प्रसारण होना चाहिए। माता-पिता को यह सुनिश्चित करना होगा कि
बच्चे ऐसे कार्यक्रम देखें जिनसे उनमें नई-नई रूचियां पैदा हो सकें।"



उन्होंने आगे कहा कि परिजनों को बच्चों की गतिविधियों में अधिक से अधिक
सम्मिलित होने की जरूरत भी है। एक सात वर्षीय बच्ची में आए यौवन से जुड़े
मामले पर किए गए अध्ययन का हवाला देते हुए मंजू मेहता ने बताया कि परिजनों
को अपने बच्चों के लिए अधिक से अधिक मददगार की भूमिका निभानी होगी।
उन्होंने कहा, "जब बच्चियां इस अवस्था से गुजरती हैं तो परिजनों को अधिक
समझदारी से काम लेना होगा, क्योंकि इस अवस्था में मानसिक समस्याएं होने की
आशंका सर्वाधिक रहती है।" 





www.pardaphash.com


Post a Comment

Previous Post Next Post