बिहार के एक गांव में पिछले चार दशकों से एक परंपरा का निर्वाह हो रहा है। यहां लड़कियां जनेऊ धारण करती हैं। आम तौर पर ब्राह्मण समुदाय या अन्य समुदायों में भी यह पवित्र धागा सिर्फ पुरुषों के लिए 'आरक्षित' रहा है। गांव में एक समारोह के बाद सुमन कुमारी, प्रियंका कुमारी, प्रतिमा कुमारी, कुंती कुमारी के बीच एक ही समानता दिखती है और वह यह है कि ये सभी जनेऊ पहनती हैं।
परंपरावादी और अर्ध सामंती बिहार के गांव में ऐसा होना एक विरल मामला है। हरिनारायण आर्य ने इस संबंध में बताया, "मणियां गांव के दयानंद आर्य उच्च विद्यालय में आयोजित यज्ञोपवीत संस्कार में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ नौ लड़कियों को जनेऊ पहनाया गया।" आचार्य सिद्धेश्वर शर्मा के मुताबिक, ऐसी लड़कियों की उम्र 13 और 15 वर्ष के बीच है। शर्मा ने ही यज्ञोपवीत संस्कार कराया।
उन्होंने कहा, "इस गांव में लड़कियों के जनेऊ पहनने के लिए कोई जातिगत आधार नहीं है।" शर्मा ने बताया कि पिछले 40 वर्षो से गांव में इस परंपरा का निर्वाह हो रहा है। उन्होंने कहा, "हम हर वर्ष बसंत पंचमी के मौके पर लड़कियों का यज्ञोपवीत संस्कार कराते हैं।"
मणियां गांव में यह परंपरा 1972 में विश्वनाथ सिंह ने शुरू की। उन्होंने उस समय लड़कियों के लिए हाई स्कूल स्थापित किया और अपने चार बेटियों को स्कूल भेजा। उस समय बेटियों की शिक्षा के प्रति कोई जागरूकता नहीं थी, लेकिन सिंह की बेटियों के स्कूल जाने के बाद दूसरे लोगों को भी प्रोत्साहन मिला। सिंह ने इसके बाद अपनी बड़ी बेटी के लिए यज्ञोपवीत संस्कार का आयोजन किया। इसके बाद यह गांव में परंपरा के रूप में स्वीकृत हो गई।
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