समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख मुलायम सिंह यादव के कई विश्वास पात्र अफसर ही अखिलेश यादव सरकार के लिए अड़ंगेबाज साबित हो रहे हैं। 20 माह के कार्यकाल में इन अफसरों की वजह से अखिलेश सरकार की खूब किरकिरी हुई है। इन अफसरों को विकास के कार्यो में बाधक भी माना जा रहा है। 2012 में सत्ता में आने के बाद अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री सचिवालय के साथ-साथ सिंचाई, गृह, वित्त, लोक निर्माण, परिवहन, आबकारी, पंचायती सहित लगभग सभी विभागों में पूर्ववर्ती मायावती सरकार द्वारा तैनात सैकड़ों आईएएस अफसरों को हटाकर नए अधिकारी तैनात किए थे।
मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, अपर पुलिस महानिदेक(कानून व्यवस्था) और प्रमुख सचिव गृह जैसे महत्वपूर्ण पदों पर नए चेहरों को नियुक्त किया गया, लेकिन ये अफसर अपनी कार्यक्षमता और कुशलता से जनता को उसरकार के प्रति अच्छा एहसास नहीं करा सके। उल्टा इन अधिकारियों द्वारा कई बार ऐसे संवेदनहीन बयान दिए गए जिनसे सरकार की जमकर किरकिरी हुई।
राजनीतिक चिंतक एच़ एऩ दीक्षित का कहना है कि उत्तर प्रदेश के पूर्व के कुछ मुख्यमंत्रियों की तरह मुख्यमंत्री अखिलेश ने भी सत्ता संभालने के बाद प्रमुख विभागों में अपने चहेते अफसरों को बैठाया। अब वही चहेते अफसर विफल साबित हो रहे हैं। दीक्षित ने कहा कि हर मुख्यमंत्री को अफसरों की तैनाती उनकी योग्यता और कार्यकुशलता के आधार पर करनी चाहिए। योग्य अफसर ही बेहतर प्रदर्शन कर सकता है।
प्रमुख सचिव अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास के रूप में करीब एक साल तक तैनात रहे अनिल कुमार गुप्ता के लगभग असफल साबित होने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश ने उन्हें हटाकर सूर्य प्रताप सिंह को तैनात किया पर वो विभाग को पटरी पर लाने में असफल रहे। अनिल कुमार गुप्ता हालांकि फिर से प्रमुख सचिव (गृह) जैसा महत्वपूर्ण पद पाने में सफल रहे लेकिन मुजफ्फरनगर के राहत शिविरों में ठंड से मौतों पर दिए असंवेदनहीन बयान से उनकी हर तरफ जमकर किरकिरी हुई।
राज्य की बदहाल बिजली व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश ने बड़े भरोसे के साथ संजय अग्रवाल को प्रमुख सचिव ऊर्जा का प्रभार दिया। लगभग एक साल का समय बीतने को है लेकिन वह कोई करिश्मा नहीं दिखा सके। सूबे की सबसे अधिक ताकतवर अफसर मानी जाने वाली प्रमुख सचिव (मुख्यमंत्री) अनीता सिंह की कार्यप्रणाली को लेकर मंत्रियों, विधायकों व कुछ अफसरों ने कई बार सवाल खड़े किए। उनका पंचमतल व जिलों में जिलाधिकारियों की तैनाती को लेकर विरोध भी हुआ लेकिन विरोधी परास्त हुए।
सात वर्ष से एक ही विभाग में जमे प्रमुख सचिव गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग राहुल भटनागर की अदूरदर्शी नीतियों के चलते गन्ने के मुद्दे पर सरकार की जमकर किरकिरी हुई है। पीसीएस से आईएएस बने एस़ पी़ सिंह की नगर विकास विभाग में तूती बोलती है। कई प्रमुख सचिवों ने नगर विकास विभाग से अपना तबादला इसलिए करवा लिया क्योंकि उनके अधीनस्थ एस़ पी़ सिंह अधिक प्रभावशाली साबित हो रहे थे।
पंचायती राज विभाग के कई प्रमुख सचिव बदल चुके लेकिन आज तक राज्य सरकार की गरीबों को कंबल और साड़ी बांटने की योजना को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। यही हाल प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल और प्रमुख सचिव लोक निर्माण विभाग रजनीश दुबे का है। इनके विभाग की वजह से अधिकतर विकास कार्य ठप पड़े हैं।
एक आईएएस अफसर ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, "यह प्रदेश का बड़ा दुर्भाग्य है कि राजनीतिक दल अब आईएएस अफसरों को उनकी काबिलियत के बजाय राजनीति और जातीयता के चश्मे से देखने लगे हैं। इस प्रवृत्ति के कारण नाकाबिल अफसरों की महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती हो जाती है जिससे सूबे का विकास कार्य प्रभावित होता है। सत्ता परिवर्तन के बाद ऐसे अफसरों को महत्वहीन पदों पर फेंक दिया जाता है।"
कहा जा रहा है कि राज्य के महत्वपूर्ण विभागों में तैनात कई आईएएस अफसर आचार संहिता लागू होने का इंतजार कर रहे हैं ताकि आने वाले कुछ माह सुकून ले गुजर सकें। मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की छवि ईमानदार है। विकास कार्यो की समीक्षा बैठकें बुलाने से कई विभागों के प्रमुख सचिव उनसे असहज महसूस करते हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि चहेते अफसरों में कुछ बेहतर काम कर सकते हैं लेकिन सरकार ने उन्हें काम करने की पूरी आजादी नहीं दी।
राजनीतिक विश्लेषक रमेश दीक्षित ने कहा कि वर्तमान सरकार ने अपनी पसंद के अफसर तो तैनात किए लेकिन उन्हें पूरी कार्य स्वतंत्रता नहीं दी। सरकार के अलग-अलग शक्ति केंद्र समय-समय पर निर्देश देकर अधिकारियों को अपने मुताबिक काम करवाने के लिए बाध्य करते रहे।
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चहेते ही हैं डुबोते !
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