गणेश चतुर्थी विशेष: माता पार्वती ने भी 21 दिन तक रखा था गणेश जी का व्रत




पार्वती नंदन व रिद्दी सिद्धी के दाता गणेशजी का जन्मोत्सव 'गणेश चतुर्थी'
के अवसर पर पूरे देश में धूम मची हुई है। गणपति धाम व गणेश जी के प्रमुख
मंदिरों में जहां भव्य सजावट का दौर जारी रहा वहीं उनके दर्शन के लिए
भक्तों की लम्बी कतार भी देखी गई| यह त्यौहार महाराष्ट्र और गोवा में
कोंकणी लोगों का सबसे ज्यादा लोकप्रिय त्यौहार है, जिसे वह बड़ी धूम-धाम और
श्रद्धा के साथ मानते हैं। इसके साथ ही गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश के
अलावा भारत के सभी राज्यों में इस त्यौहार में बड़ी धूम रहती है।



भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को ही 'श्री गणेश चतुर्थी' कहते हैं। भाद्रपद
शुक्ल की चतुर्थी को गणेश भगवान का जन्म हुआ था। भारतीय संस्कृति के अनुसार
गणेश भगवान की पूजा बुद्धि, समृद्धि, सौभाग्य और किसी भी शुभ कार्य के
करने को करने से पहले की जाती है। इस बार गणेश चतुर्थी 29 अगस्त दिन
शुक्रवार को पड़ रही है| गणेश जी को बुद्धि के देवता और विघ्नों का विनाशक
माना जाता है। चूहे की सवारी करने वाले गणेश जी का प्रिय भोग लड्डू है।
गणेश जी का विवाह ऋद्धि तथा सिद्धि नामक दो स्त्रियों के साथ हुआ है।



एक बार की बात है माता पार्वती स्नान करने जा रही थीं। वह चाहती थी की
स्नान करते समय उन्हें कोई परेशान न करें। तब उन्होंने स्नान से पहले अपने
मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसे अपना द्वारपाल बनाकर दरवाजे
पर पहरा देने का आदेश दिया। उसी समय वहाँ भगवान शिवजी आये और अन्दर प्रवेश
करने लगे, तब बालक ने उन्हें बाहर रोक दिया। शिव जी ने उस बालक को कई बार
समझाया लेकिन वह नहीं माना। इस पर शिवगणों ने भगवान शिवजी के कहने पर उस
बालक को द्वार से हटाने के लिए उससे भयंकर युद्ध किया। लेकिन उसे कोई
पराजित नहीं कर सका। बालक के पराक्रम और हठधर्मिता से क्रोधित होकर शिवजी
ने उस बालक का सिर काट दिया।



जब माता पार्वती स्नान करके निकली तो अपने पुत्र का कटा हुआ सिर देखकर
क्रोधित हो उठीं और शिवजी से उसे पुनः जीवित करने के लिए कहा। उन्होंने कहा
की अगर उनके पुत्र को जीवित नहीं किया गया तो प्रलय आ जाएगी। यह सब देखकर
सारे देवी-देवता भयभीत हो गये। तब देवर्षि नारद न एपर्वती जी को शांत किया
और बालक को जिन्दा करने का अनुराध भगवान शिवजी से करने लगे। बड़ी समस्या यह
थी कि कटा हुआ सिर वापस से धड के साथ जुड नही सकता था। अतः यह तय हुआ कि
अगर किसी दूसरे जीव का सिर मिल जाए तो यह बालक वापस से जिन्दा हो जाएगा।



शिव जी के आदेशानुसार शिवगणों जब दूसरा सिर खोजने निकले तो उन्हें एक जंगल
में एक हाथी का बच्चा मिला। शिवगणों उस हाथी के बच्चे का सिर काटकर ले आए।
इसके पश्चात शिव जी ने उस गज के कटे हुए मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे
पुनर्जीवित कर दिया और इस बालक का नाम गणेश पड़ा।



गणेश चतुर्थी के अवसर पर भगवान गणेश की स्थापना की जाती है। सभी भक्तगण
गणेश जी का उपवास रखते हैं। इस दिन घरों व मंदिरों में गणेश जी की मूर्ति
स्थापित की जाती है। कई दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार को देखने के लिए
दूर-दूर से लोग आते हैं और गणेश भगवान की पूजा-अर्चना में शामिल होते हैं।
दस दिन चलने वाले इस उत्सव के बाद गणेश भगवान की प्रतिमा को विसर्जित किया
जाता है।



गणेश चतुर्थी कथा-



श्री गणेश चतुर्थी व्रत को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलन में है| कथा के
अनुसार एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के निकट बैठे थें|
वहां देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से समय व्यतीत करने के लिये चौपड खेलने
को कहा| भगवान शंकर चौपड खेलने के लिये तो तैयार हो गये| परन्तु इस खेल मे
हार-जीत का फैसला कौन करेगा?



इसका प्रश्न उठा, इसके जवाब में भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर
उसका पुतला बना, उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा कि
बेटा हम चौपड खेलना चाहते है| परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई
नहीं है| इसलिये तुम बताना की हम मे से कौन हारा और कौन जीता|



यह कहने के बाद चौपड का खेल शुरु हो गया| खेल तीन बार खेला गया, और संयोग
से तीनों बार पार्वती जी जीत गई| खेल के समाप्त होने पर बालक से हार-जीत का
फैसला करने के लिये कहा गया, तो बालक ने महादेव को विजयी बताया| यह सुनकर
माता पार्वती क्रोधित हो गई और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगडा होने व
कीचड़ में पडे रहने का श्राप दे दिया| बालक ने माता से माफी मांगी और कहा
की मुझसे अज्ञानता वश ऎसा हुआ, मैनें किसी द्वेष में ऎसा नहीं किया| बालक
के क्षमा मांगने पर माता ने कहा की, यहां गणेश पूजन के लिये नाग कन्याएं
आयेंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऎसा करने से तुम मुझे प्राप्त
करोगें, यह कहकर माता, भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई|



ठीक एक वर्ष बाद उस स्थान पर नाग कन्याएं आईं| नाग कन्याओं से श्री गणेश के
व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत
किया| उसकी श्रद्धा देखकर गणेश जी प्रसन्न हो गए और श्री गणेश ने बालक को
मनोवांछित फल मांगने के लिये कहा| बालक ने कहा कि हे विनायक मुझमें इतनी
शक्ति दीजिए, कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत
पर पहुंच सकूं और वो यह देख प्रसन्न हों|



बालक को यह वरदान दे, श्री गणेश अन्तर्धान हो गए| बालक इसके बाद कैलाश
पर्वत पर पहुंच गया और अपने कैलाश पर्वत पर पहुंचने की कथा उसने भगवान
महादेव को सुनाई| उस दिन से पार्वती जी शिवजी से विमुख हो गई| देवी के
रुष्ठ होने पर भगवान शंकर ने भी बालक के बताये अनुसार श्री गणेश का व्रत 21
दिनों तक किया| इसके प्रभाव से माता के मन से भगवान भोलेनाथ के लिये जो
नाराजगी थी वह समाप्त हो गई|



यह व्रत विधि भगवन शंकर ने माता पार्वती को बताई| यह सुन माता पार्वती के
मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई| माता ने भी
21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया और दुर्वा, पुष्प और लड्डूओं से श्री गणेश
जी का पूजन किया| व्रत के 21 वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से आ
मिलें| उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का व्रत मनोकामना पूरी करने वाला व्रत
माना जाता है|






पर्दाफाश डॉट कॉम से साभार



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