
मासोत्तम मास भी कहा जाता है। इस मास की पूर्णमासी के दिन श्रवण नक्षत्र
का योग होने के कारण इस मास का नाम श्रावण मास या सावन पड़ा। ऎसा माना जाता
है कि देवताओं व दानवों के बीच समुद्र मंथन भी श्रावण मास में ही हुआ था।
पौराणिक कथा के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने
के लिए श्रावण मास में निराहार रहकर कठोर तप किया था, इसीलिए भगवान शंकर को
श्रावण मास अत्यंत प्रिय है।
श्रावण मास में महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायक है। महामृत्युंजय
मंत्र के जप व उपासना के तरीके आवश्यकता के अनुरूप होते हैं। अधिकतर लोग
इसे आपदा, बीमारी में रक्षा और मरणासन्न व्यक्ति की जान बचाने के लिए
प्रयोग में लाता है। लेकिन सावन मास में हर तरह की उपासना के लिए इस मंत्र
का जप किया जाता है।
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।
इस मंत्र को संपुटयुक्त बनाने के लिए इसका उच्चारण इस प्रकार किया जाता है…
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ
जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें। एक निश्चित
संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम
मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं| मंत्र का उच्चारण
होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।
जप काल में धूप-दीप जलते रहना चाहिए। रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।
माला को गौमुखी में रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गौमुखी
से बाहर न निकालें। जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या
महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है।महामृत्युंजय के सभी जप कुशा
के आसन के ऊपर बैठकर करें। जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक
करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें। महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग
पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।
जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना
चाहिए। जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधर न
भटकाएं। जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें।
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।
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