कार्तिक पूर्णिमा पर लगाए आस्था की डुबकी





कार्तिक का महीना बहुत पवित्र माना गया है। इस माह में की गई भक्ति-आराधना का पुण्य कई जन्मों तक बना रहता है। इस माह में किए गए दान, स्नान, यज्ञ, उपासना से श्रद्धालु को तुरंत ही शुभ फल प्राप्त होने लगते हैं। इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा 25 नवम्बर दिन बुधवार को है |





शास्त्रों के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा शाम भगवान श्रीहरि ने मत्स्यावतार के रूप में प्रकट हुए। भगवान विष्णु के इस अवतार की तिथि होने की वजह से आज किए गए दान, जप का पुण्य दस यज्ञों से प्राप्त होने वाले पुण्य के बराबर माना जाता है। पूर्णिमा पर पवित्र नदिनों में दीपदान करने की भी परंपरा हैं। देश की सभी प्रमुख नदियों में श्रद्धालुओं द्वारा दीपदान किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर यदि कृतिका नक्षत्र आ रहा हो तो यह महाकार्तिकी होती है। भरणी नक्षत्र होने पर यह विशेष शुभ फल देती है। रोहिणी नक्षत्र हो तो इस दिन किए गए दान-पुण्य से सुख-समृद्धि और धन की प्राप्ति है।





कार्तिक पूर्णिमा की पूजन विधि-





इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर पूरा दिन निराहार रहते हैं और भगवान विष्णु की आराधना करते हैं| श्रद्धालुगण इस दिन गंगा स्नान के लिए भी जाते हैं, जो गंगा स्नान के लिए नहीं जा पाते वह अपने नगर की ही नदी में स्नान करते हैं| भगवान का भजन करते हैं| संध्या समय में मंदिरों, चौराहों, गलियों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाते हैं| लम्बे बाँस में लालटेन बाँधकर किसी ऊंवे स्थान में “आकाशी” प्रकाशित करते हैं| इस व्रत को करने में स्त्रियों की संख्या अधिक होती है|





इस दिन कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करने वाले व्यक्ति को ब्राह्मण को भोजन अवश्य कराना चाहिए| भोजन से पूर्व हवन कराएं| संध्या समय में दीपक जलाना चाहिए| अपनी क्षमतानुसार ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देनी चाहिए| कार्तिक पूर्णिमा के दिन रात्रि में चन्द्रमा के दर्शन करने पर शिवा, प्रीति, संभूति, अनुसूया, क्षमा तथा सन्तति इन छहों कृत्तिकाओं का पूजन करना चाहिए| पूजन तथा व्रत के उपरान्त बैल दान से व्यक्ति को शिवलोक प्राप्त होता है, जो लोग इस दिन गंगा तथा अन्य पवित्र स्थानों पर श्रद्धा – भक्ति से स्नान करते हैं, वह भाग्यशाली होते हैं|





कार्तिक पूर्णिमा की कथा-





प्राचीन समय की बात है, एक नगर में दो व्यक्ति रहते थे| एक नाम लपसी था और दूसरे का नाम तपसी था| तपसी भगवान की तपस्या में लीन रहता था, लेकिन लपसी सवा सेर की लस्सी बनाकर भगवान का भोग लगाता और लोटा हिलाकर जीम स्वयं जीम लेता था| एक दिन दोनों स्वयं को एक-दूसरे से बडा़ मानने के लिए लड़ने लगे| लपसी बोला कि मैं बडा़ हूं और तपसी बोला कि मैं बडा़ हूँ, तभी वहाँ नारद जी आए और पूछने लगे कि तुम दोनों क्यूं लड़ रहे हो? तब लपसी कहता है कि मैं बडा़ हूं और तपसी कहता है कि मैं बडा़ हूँ| दोनों की बात सुनकर नारद जी ने कहा कि मैं तुम्हारा फैसला कर दूंगा|





अगले दिन तपसी नहाकर जब वापिस आ रहा था, तब नारद जी ने उसके सामने सवा करोड़ की अंगूठी फेंक दी| तपसी ने वह अंगूठी अपने नीचे दबा ली और तपस्या करने बैठ गया| लपसी सुबह उठा, फिर नहाया और सवा सेर लस्सी बनाकर भगवान का भोग लगाकर जीमने लगा| तभी नारद जी आते हैं और दोनों को बिठाते हैं| तब दोनों पूछते है कि कौन बडा़ है? तपसी बोला कि मैं बडा़ हूँ| नारद जी बोले – तुम गोडा़ उठाओ और जब गोडा़ उठाया तो सवा करोड़ की अंगूठी निकलती है| नारद जी कहते हैं कि यह अंगूठी तुमने चुराई है| इसलिए तेरी तपस्या भंग हो गई है और लपसी बडा़ है|





सभी बातें सुनने के बाद तपसी नारद जी से बोला कि मेरी तपस्या का फल कैसे मिलेगा? तब नारद जी उसे कहते हैं – तुम्हारी तपस्या का फल कार्तिक माह में पवित्र स्नान करने वाले देगें उसके आगे नरद जी कहते हैं कि सारी कहानी कहने के बाद जो तेरी कहानी नहीं सुनाएगा या सुनेगा, उसका कार्तिक का फल खत्म हो जाएगा|


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