स्वाधीनता के अग्रणी क्रांतिकारी थे मंगल पांडे




लखनऊ| भारतीय स्वाधीनता संग्राम में मंगल पांडे का नाम अग्रणी योद्धाओं के रूप में लिया जाता है जिनके द्वारा भ़डकाई गई क्रांति की ज्वाला से ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन बुरी तरह हिल गया था । सन 1857 में हुए पहले स्वतंत्रता संग्राम के नायक मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नागवा गाँव में हुआ था| मंगल पांडे ने ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ विद्रोह का जो कदम उठाया वह अंग्रेजों पर ज्वाला बनकर टूट पड़ा था|



बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इनफैंट्री के इस जवान के मन में अंग्रेजों के खिलाफ धधक रही अग्नि ने उस समय उग्र रूप ले लिया जब सेना में इनफील्ड पी-53 राइफल को शामिल किया गया| इस राइफल के कारतूस के बारे में कहा गया था कि इसमें गाय व सुअर की चर्बी लगी है और अंग्रेज ऐसा हिन्दू-मुसलमानों का धर्म नष्ट करने के मकसद से कर रहे हैं| इस बात ने आज़ादी की पहली लड़ाई को मजबूत आधार प्रदान किया|



यही वजह थी कि हिंदू और मुसलमान सिपाहियों ने अंग्रेजों को सबक सिखाने की ठान ली तथा कारतूसों का इस्तेमाल करने से इंकार कर दिया| गोरी हुकूमत को देश से बाहर का रास्ता दिखाने के इरादे से मंगल पांडे ने 29 मार्च, 1857 को लेफ्टिनेंट बॉग़ सहित अन्य अंग्रेज अधिकारियों पर हमला कर दिया लेकिन वह पकड़ लिए गए| उनकी गिरफ्तारी की खबर देशभर की सैनिक छावनियों में जंगल में आग की तरह फैल गई और नाराज़ भारतीय सैनिकों ने बगावत का बिगुल फूंक दिया|



कोर्ट मार्शल में छह अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी देने के लिए 18 अप्रैल की तारीख तय की गई| उनको मिली मौत की सजा की खबर सुनते ही देश में विद्रोह फ़ैल गया और देश में अंग्रेजों के खिलाफ संग्राम छिड गया| देश में उठ रही विरोध की लहर को देखते हुए मंगल पांडे को तय समय से 10 दिन पहले 8 अप्रैल को फांसी दे दी गई| देश के इस महान सेनानी की फांसी के बाद देश में महीनों तक आजादी की लड़ाई चलती रही लेकिन अंग्रेजों द्वारा इस विद्रोह को दबा दिया गया|



देश की स्वतंत्रता के लिए लड़े गए इस युद्ध को शुरू में ‘1857 का गदर’ नाम मिला लेकिन बाद में इसे पहली ‘जंग ए आजादी’ के रूप में मान्यता प्राप्त हो गई| उनके प्रयास का ही नतीजा था कि स्वंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई के 90 साल बाद 1947 में देश को अंग्रेजों की गुलामी से आज़ादी मिल गयी|  

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