वैशाख मास में गंगा स्नान करने से होती हैं भगवान विष्णु की कृपा




आपको पता है चैत्र शुक्ल पूर्णिमा से वैशाख मास स्नान आरंभ हो जाता है। यह स्नान पूरे वैशाख मास तक चलता है। इस बार वैशाख मास स्नान 6 अप्रैल, शुक्रवार से प्रारंभ हो चुका है। धर्म ग्रंथों में वैशाख मास को अन्य मासों में सबसे उत्तम माना गया है| पुराणों में भी कहा गया है कि वैशाख मास में जो व्यक्ति सूर्योदय से पहले गंगा स्नान करता है , वह भगवान विष्णु का कृपापात्र होता है।



वैशाख व्रत महात्म्य की कथा सुनना चाहिए तथा ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए। व्रती को एक समय भोजन करना चाहिए। वैशाख मास में जलदान का विशेष महत्व है। इस मास में प्याऊ की स्थापना करवानी चाहिए। पंखा, खरबूजा एवं अन्य फल, नवीन अन्न आदि का दान करना चाहिए।



वैशाख मास में क्यों जरुरी माना गया है गंगा स्नान-



क्या आपको पता है कि वैशाख मास में क्यों गंगा स्नान को महत्व दिया गया है? अगर नहीं पता है तो आज हम आपको बताते हैं कि आखिर वैशाख मास में क्यों गंगा स्नान करना चाहिए|



आपको बता दें कि हिन्दू धर्म में गंगा को मां का दर्जा दिया गया है। यह देव नदी भी मानी गई है। क्योंकि पौराणिक मान्यताओं में गंगा स्वर्ग से भू-लोक में जगत कल्याण के लिए राजा भगीरथी के घोर तप से आई। इस दौरान गंगा के अलौकिक वेग को भगवान शंकर ने अपनी जटाओं से काबू किया। यही कारण है कि युग-युगान्तर से गंगा पावन और मोक्ष देने वाली मानी जाती है। वैज्ञानिक रूप से यह साबित हो चुका है कि गंगा का जल पवित्र और रोगनाशक है। 



यही कारण है कि धर्म में आस्था रखने वाले अनेक लोग गंगा स्नान की गहरी चाहत रखते हैं। खासतौर पर हिन्दू माह वैशाख में तो गंगा स्नान महापापों का नाश करने वाला भी माना गया है। इसलिए गंगा स्नान करना चाहिए|



वैशाख मास में स्नान का महत्व-



कार्तिक मास में एक हज़ार बार यदि गंगा स्नान करें और माघ मास में सौ बार स्नान करें, वैशाख मास में नर्मदा में करोड़ बार स्नान करें तो उन स्नानों का जो फल होता है वह फल प्रयाग में कुम्भ के समय पर स्नान करने से प्राप्त होता है।



इस मास में प्रात: स्नान का विधान है।



विशेष रूप से इस अवसर पर पवित्र सरिताओं में स्नान की आज्ञा दी गयी है। इस सम्बन्ध में पद्म पुराण का कथन है कि वैशाख मास में प्रात: स्नान का महत्त्व अश्वमेध यज्ञ के समान है। इसके अनुसार शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगाजी का पूजन करना चाहिए, क्योंकि इसी तिथि को महर्षि जह्नु ने अपने दक्षिण कर्ण से गंगा जी को बाहर निकाला था।

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