हिन्दू धर्म में भगवान शिव को मृत्युलोक देवता माने गए हैं। शिव को अनादि,
अनंत, अजन्मा माना गया है यानि उनका कोई आरंभ है न अंत है। न उनका जन्म हुआ
है, न वह मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इस तरह भगवान शिव अवतार न होकर
साक्षात ईश्वर हैं। भगवान शिव को कई नामों से पुकारा जाता है। कोई उन्हें
भोलेनाथ तो कोई देवाधि देव महादेव के नाम से पुकारता है| वे महाकाल भी
कहे जाते हैं और कालों के काल भी।
शिव की साकार यानि मूर्तिरुप और निराकार यानि अमूर्त रुप में आराधना की
जाती है। शास्त्रों में भगवान शिव का चरित्र कल्याणकारी माना गया है। उनके
दिव्य चरित्र और गुणों के कारण भगवान शिव अनेक रूप में पूजित हैं।
आखिर क्यों भगवान शंकर को कालों के काल कहा जाता है, आइये जाने-
आपको बता दें कि देवाधी देव महादेव मनुष्य के शरीर में प्राण के प्रतीक
माने जाते हैं| आपको पता ही है कि जिस व्यक्ति के अन्दर प्राण नहीं होते
हैं तो उसे शव का नाम दिया गया है| भगवान् भोलेनाथ का पंच देवों में सबसे
महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है|
भगवान शिव को मृत्युलोक का देवता माना जाता है| आपको पता होगा कि भगवान शिव
के तीन नेत्रों वाले हैं| इसलिए त्रिदेव कहा गया है| ब्रम्हा जी सृष्टि
के रचयिता माने गए हैं और विष्णु को पालनहार माना गया है| वहीँ, भगवान शंकर
संहारक है| यह केवल लोगों का संहार करते हैं| भगवान भोलेनाथ संहार के
अधिपति होने के बावजूद भी सृजन का प्रतीक हैं। वे सृजन का संदेश देते हैं।
हर संहार के बाद सृजन शुरू होता है।
इसके आलावा पंच तत्वों में शिव को वायु का अधिपति भी माना गया है। वायु जब
तक शरीर में चलती है, तब तक शरीर में प्राण बने रहते हैं। लेकिन जब वायु
क्रोधित होती है तो प्रलयकारी बन जाती है। जब तक वायु है, तभी तक शरीर में
प्राण होते हैं। शिव अगर वायु के प्रवाह को रोक दें तो फिर वे किसी के भी
प्राण ले सकते हैं, वायु के बिना किसी भी शरीर में प्राणों का संचार संभव
नहीं है।

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