जब गाँधी ने दिए रबीन्द्रनाथ को 60 हजार रुपये





गुरुदेव के नाम से विख्यात रवींद्रनाथ ठाकुर महान कवि, साहित्यकार,
दार्शनिक और नोबल पुरस्कार से सम्मानित होने वाले एकमात्र भारतीय
साहित्यकार हैं। ठाकुर का 7 अगस्त, 1941 को निधन हो गया था। रवींद्रनाथ
ठाकुर भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकने वाले युगद्रष्टा कवि थे।
साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाले वे एशिया के प्रथम
व्यक्ति हैं। वे एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनकी दो अलग-अलग रचनाएं दो देशों का
राष्ट्रगान हैं। भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बांग्लादेश का
राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांग्ला' गुरुदेव की ही रचनाएं हैं।



रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म देवेन्द्रनाथ टैगोर और शारदा देवी की संतान के
रूप में 7 मई, 1861 को कोलकाता के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में हुआ। उनकी
स्कूल की पढ़ाई सेंट जेवियर स्कूल में हुई। उन्होंने बैरिस्टर बनने की चाहत
में 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटाऊन में पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया।
उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया, लेकिन 1880 में
बिना डिग्री हासिल किए ही स्वदेश वापस आ गए। सन 1883 में मृणालिनी देवी के
साथ उनका विवाह हुआ।



बचपन से ही उनमें कविता, छंद और भाषा में अद्भुत प्रतिभा की झलक मिलने लगी
थी। उन्होंने पहली कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी और 1877 में केवल सोलह
साल की उम्र में उनकी लघुकथा प्रकाशित हुई थी।



ठाकुर के सृजन संसार में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ,
वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर
खेला और क्षणिका आदि शामिल हैं।



टैगोर को बचपन से ही प्रकृति का सान्निध्य बहुत भाता था। वह हमेशा सोचा
करते थे कि प्रकृति के सानिध्य में ही विद्यार्थियों को अध्ययन करना चाहिए।
इसी सोच को मूर्तरूप देने के लिए वह 1901 में सियालदह छोड़कर आश्रम की
स्थापना करने के लिए शांतिनिकेतन आ गए। प्रकृति के सान्निध्य में पेड़ों,
बगीचों और एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की।



टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। रवींद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का
अभिन्न अंग है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता।
उनकी अधिकतर रचनाएं तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं। हिंदुस्तानी
शास्त्रीय संगीत की ठुमरी शैली से प्रभावित ये गीत मानवीय भावनाओं के
अलग-अलग रंग प्रस्तुत करते हैं।



गुरुदेव ने जीवन के अंतिम दिनों में चित्र बनाना शुरू किया। इसमें युग का संशय, मोह, क्लांति और निराशा के स्वर प्रकट हुए हैं।



ठाकुर और महात्मा गांधी के बीच राष्ट्रीयता और मानवता को लेकर हमेशा
वैचारिक मतभेद रहा। जहां गांधी पहले पायदान पर राष्ट्रवाद को रखते थे, वहीं
टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से अधिक महत्व देते थे। लेकिन दोनों एक दूसरे
का बहुत अधिक सम्मान करते थे। ठाकुर ने गांधीजी को महात्मा का विशेषण दिया
था। एक समय था जब शांतिनिकेतन आर्थिक कमी से जूझ रहा था और गुरुदेव देश भर
में नाटकों का मंचन करके धन संग्रह कर रहे थे। उस वक्त गांधी जी ने टैगोर
को 60 हजार रुपये के अनुदान का चेक दिया था।



उनकी काव्यरचना गीतांजलि के लिये उन्हें सन् 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। 





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