साहस के प्रतिमूर्ति थे गोविंद बल्लभ पंत





उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री एवं देश के पूर्व गृह मंत्री गोविंद बल्लभ पंत अपने दृढ़ संकल्प और साहस के लिए आज भी श्रद्धापूर्वक याद किए जाते हैं। जाने-माने वकील गोविंद की धाक इतनी कि अंग्रेज सरकार उनके काशीपुर को 'गोविंदगढ़' कहने लगी। भारत रत्न पंत ने ही जमींदारी उन्मूलन कानून को प्रभावी बनाया था। पंत का जन्म 10 सितंबर 1887 को वर्तमान उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले के खूंट (धामस) नामक गांव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इस परिवार का संबंध कुमाऊं की एक अत्यंत प्राचीन और सम्मानित परंपरा से है। पंतों की इस परंपरा का मूल स्थान महाराष्ट्र का कोंकण प्रदेश माना जाता है।





पंत ने 10 वर्ष की आयु तक घर पर ही शिक्षा ग्रहण की। गोविंद ने लोअर मिडिल की परीक्षा संस्कृत, गणित, अंग्रेजी विषयों में विशेष योग्यता के साथ प्रथम श्रेणी में पास की। इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया तथा बीए में गणित, राजनीति और अंग्रेजी साहित्य विषय लिए।





इलाहाबाद में नवयुवक गोविंद को कई महापुरुषों का सान्निध्य एवं संपर्क मिला साथ ही जागरूक, व्यापक और राजनीतिक चेतना से भरपूर वातावरण मिला। 1909 में गोविंद वल्लभ पंत को कानून की परीक्षा में विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम आने पर 'लेम्सडैन' स्वर्ण पदक प्रदान किया गया। 1910 में पंत ने अल्मोड़ा में वकालत की। बाद में वह काशीपुर आ गए। काकोरी कांड के आरोपियों के मुकदमे की पैरवी के लिए अन्य वकीलों के साथ पंत ने जी-जान से सहयोग किया। उस समय वे नैनीताल से स्वराज पार्टी के टिकट पर लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य भी थे। 1928 के साइमन कमीशन के बहिष्कार और 1930 के नमक सत्याग्रह में भी उन्होंने भाग लिया और मई 1930 में देहरादून जेल में बंद रहे।





मुकदमा लड़ने का उनका ढंग निराला था, जो मुवक्किल अपने मुकदमों के बारे में सही जानकारी नहीं देते थे, पंत उनका मुकदमा नहीं लेते थे। पंत की वकालत की काशीपुर में धाक थी। उन्हीं के कारण काशीपुर राजनीतिक तथा सामाजिक दृष्टियों से कुमाऊं के अन्य नगरों की अपेक्षा अधिक जागरूक था। अंग्रेज शासकों ने काशीपुर नगर को काली सूची में शामिल कर लिया। पंत के नेतृत्व के कारण अंग्रेज सरकार काशीपुर को 'गोविंदगढ़' कहती थी।





17 जुलाई 1937 से लेकर 2 नवंबर 1939 तक पंत ब्रिटिश शासित भारत में संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) के पहले मुख्यमंत्री बने। पंत 1946 से दिसंबर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। पंत को भूमि सुधारों में पर्याप्त रुचि थी। 21 मई, 1952 को जमींदारी उन्मूलन कानून को प्रभावी बनाया। मुख्यमंत्री के रूप में उनकी योजना नैनीताल तराई को आबाद करने की थी।





सरदार बल्लभ भाई पटेल के निधन के बाद पंत को केंद्रीय गृह मंत्री का दायित्व दिया गया। देश के गृह मंत्री के रूप में पंत का कार्यकाल 1955 से लेकर 1961 में उनके निधन तक रहा। भारत रत्न सम्मान उनके ही कार्यकाल में आरंभ किया गया। सन् 1957 में गणतंत्र दिवस के मौके पर महान देशभक्त, कुशल प्रशासक, सफल वक्ता, तर्क के धनी एवं उदारमना पंत जी को देश के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से विभूषित किया गया।





गोविंद बल्लभ पंत अच्छे नाटककार भी थे। उनका नाटक 'वरमाला' मरक डेय पुराण की एक कथा पर आधारित है। मेवाड़ की पन्ना नामक धाय के अलौकिक त्याग का ऐतिहासिक वृत्तांत लेकर उन्होंने नाटक 'राजमुकुट' की रचना की और 'अंगूर की बेटी' में उन्होंने मद्यपान के दुष्परिणाम दिखाकर सामाज को सचेत किया था।





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