बेगम अख्तर: सुरीले सफर की दिलकश मुसाफिर





भारत में ऐसे कई गायक हुए हैं जिनकी दशकों पहले की आवाज का जादू आज भी कायम है, ऐसी ही एक गायिका थीं बेगम अख्तर। सात अक्टूबर, 1914 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में जन्मी प्रतिभाशाली अख्तरी बाई, यानी, बेगम अख्तर आगे चलकर 'मल्लिका-ए-गजल' कहलाई और पद्मभूषण से सम्मानित हुईं। 





कौन जानता था कि वह अपनी मखमली आवाज में गजल, ठुमरी, ठप्पा, दादरा और ख्याल पेश कर संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज करेंगी और देश की विख्यात गायिका बनेगी। बेगम अख्तर का वास्तविक नाम 'अख्तरी बाई फैजाबादी' था। वह एक कुलीन परिवार से ताल्लुक रखती थीं। बेहद कम उम्र में उन्होंने संगीत सीखने में रुचि दिखाई। उन्हें उस जमाने के विख्यात संगीत उस्ताद अता मुहम्मद खान, अब्दुल वाहिद खान और पटियाला घराने के उस्ताद झंडे खान से भारतीय शास्त्रीय संगीत की दीक्षा दिलाई गई। 





अख्तरी बाई फैजाबादी उर्फ बेगम अख्तर ने 15 वर्ष की छोटी उम्र में मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति दी थी। यह कार्यक्रम वर्ष 1930 में बिहार में आए भूकंप के पीड़ितों के लिए आर्थिक मदद जुटाने के लिए आयोजित किया गया था, जिसकी मुख्य अतिथि प्रसिद्ध गायिका सरोजनी नायडू थीं। वह बेगम अख्तर की गायिकी से इस कदर प्रभावित हुईं कि उन्हें उपहार स्वरूप एक साड़ी भेंट की।





उस कार्यक्रम में बेगम ने गजल 'तूने बूटे हरजाई कुछ ऐसी अदा पाई, ताकता तेरी सूरत हरेक तमाशाई' और दादरा 'सुंदर साड़ी मोरी मायके मैलाई गई' से समां बांधा था। वर्ष 1945 में लखनऊ के एक बैरिस्टर इश्तियाक अहमद अब्बासी से निकाह के बाद अख्तरी बाई को बेगम अख्तर के नाम से जाना गया।





'दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे..', 'कोयलिया मत कर पुकार करेजा लगे कटार'.., 'छा रही घटा जिया मोरा लहराया है' जैसे गीत उनके प्रसिद्ध गीतों में शामिल हैं। शकील बदायूंनी की गजल 'ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया' उनकी सबसे मशहूर गजल है।





बेगम साहिबा ने वर्ष 1930 और 1940 में कुछ हिंदी फिल्मों जैसे 'एक दिन की बादशाहत', 'नल दमयंती' (1933), 'अमीना', 'मुमताज बेगम' (1934), 'जवानी का नशा' (1935), 'नसीब का चक्कर' (1936) जैसी फिल्मों में अभिनय भी किया। महबूब खान की 'रोटी' (1942) उनकी प्रसिद्ध फिल्म थी। इसमें उन्होंने छह गीत गाए थे।





मलिका-ए-गजल की मखमली आवाज आम-ओ खास को अपना दीवाना बना चुकी थी। शास्त्रीय गायक पंडित जसराज स्कूल के दिनों से ही उनके जबर्दस्त प्रशंसक रहे हैं। इस बात का खुलासा उन्होंने स्वयं एक साक्षात्कार में किया है।





कला क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने बेगम अख्तर को संगीत नाटक अकादमी (1972), पद्मश्री (1968) और पद्मभूषण (1975) से सम्मानित किया। 30 अक्टूबर, 1974 को बेगम अख्तर ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा था, "वह एकमात्र ऐसी गायिका थीं, जो गजल गायन में लफ्जों का हमेशा सही उच्चारण करती थीं।" वह अपने प्रशंसकों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगी।


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