हिंदू धर्म के धर्म शास्त्रों में प्रत्येक ऋतु व मास का अपना विशेष महत्व
बताया गया है। सामान्य रूप से तुला राशि पर सूर्यनारायण के आते ही कार्तिक
मास प्रारंभ हो जाता है। कार्तिक का माहात्म्य पद्मपुराण तथा स्कंदपुराण
में बहुत विस्तार से उपलब्ध है। कार्तिक मास में स्त्रियां ब्रह्म मुहूर्त
में स्नान करके राधा-दामोदर की पूजा करती हैं। कलियुग में कार्तिक मास व्रत
को मोक्ष के साधन के रूप में बताया गया है। कार्तिक में पूरे माह ब्रह्म
मुहूर्त में किसी नदी, तालाब, नहर या पोखर में स्नान कर भगवान की पूजा की
जाती है।
धर्म ग्रंथों में कार्तिक मास के बारे में वर्णित है कि यह मास स्नान, तप व
व्रत के लिए सर्वोत्तम है। इस माह में दान, स्नान, तुलसी पूजन तथा नारायन
पूजन का अत्यधिक महत्व है| कार्तिक माह की विशेषता का वर्णन स्कन्द पुराण
में भी दिया गया है| स्कन्द पुराण में लिखा है कि सभी मासों में कार्तिक
मास, देवताओं में विष्णु भगवान, तीर्थों में नारायण तीर्थ (बद्रीनारायण)
शुभ हैं| कलियुग में जो इनकी पूजा करेगा वह पुण्यों को प्राप्त करेगा| पदम
पुराण के अनुसार कार्तिक मास धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष देने वाला है|
पद्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति पूरे कार्तिक माह में सूर्योदय से पूर्व
उठकर नदी अथवा तालाब में स्नान करता है और भगवान विष्णु की पूजा करता है।
भगवान विष्णु की उन पर असीम कृपा होती है। पद्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति
कार्तिक मास में नियमित रूप से सूर्योदय से पूर्व स्नान करके धूप-दीप सहित
भगवान विष्णु की पूजा करते हैं वह भगवान विष्णु के प्रिय होते हैं।
पद्मपुराण की कथा के अनुसार कार्तिक स्नान और पूजा के पुण्य से ही सत्यभामा
को भगवान श्री कृष्ण की पत्नी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
कथा है कि एक बार कार्तिक मास की महिमा जानने के लिए कुमार कार्तिकेय ने
भगवान शिव से पूछा कि कार्तिक मास को सबसे पुण्यदायी मास क्यों कहा जाता
है। इस पर भगवान शिव ने कहा कि नदियों में जैसे गंगा श्रेष्ठ है, भगवानों
में विष्णु उसी प्रकार मासों में कार्तिक श्रेष्ठ मास है। इस मास में भगवान
विष्णु जल के अंदर निवास करते हैं। इसलिए इस महीने में नदियों एवं तलाब
में स्नान करने से विष्णु भगवान की पूजा और साक्षात्कार का पुण्य प्राप्त
होता है।
भगवान विष्णु ने जब श्री कृष्ण रूप में अवतार लिया तब रूक्मिणी और सत्यभामा
उनकी पटरानी हुई। सत्यभामा पूर्व जन्म में एक ब्राह्मण की पुत्री थी।
युवावस्था में ही एक दिन इनके पति और पिता को एक राक्षस ने मार दिया। कुछ
दिनों तक ब्राह्मण की पुत्री रोती रही। इसके बाद उसने स्वयं को विष्णु
भगवान की भक्ति में समर्पित कर दिया।
वह सभी एकादशी का व्रत रखती और कार्तिक मास में नियम पूर्वक सूर्योदय से
पूर्व स्नान करके भगवान विष्णु और तुलसी की पूजा करती थी। बुढ़ापा आने पर
एक दिन जब ब्राह्मण की पुत्री कार्तिक स्नान के लिए गंगा में डुबकी लगायी
तब बुखार से कांपने लगी और गंगा तट पर उसकी मृत्यु हो गयी। उसी समय विष्णु
लोक से एक विमान आया और ब्राह्मण की पुत्री का दिव्य शरीर विमान में बैठकर
विष्णु लोक पहुंच गया।
जब भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार लिया तब ब्राह्मण की पुत्री ने सत्यभामा के
रूप में जन्म लिया। कार्तिक मास में दीपदान करने के कारण सत्यभामा को सुख
और संपत्ति प्राप्त हुई। नियमित तुलसी में जल अर्पित करने के कारण सुन्दर
वाटिका का सुख मिला। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास में किये गये दान
पुण्य का फल व्यक्ति को अगले जन्म में अवश्य प्राप्त होता है।
कार्तिक में दीपदान का महत्व-
दीपदान करने के लिए कार्तिक माह का विशेष महत्व है| शास्त्रों के अनुसार इस
माह भगवान विष्णु चार माह की अपनी योगनिद्रा से जागते हैं| विष्णु जी को
निद्रा से जगाने के लिए महिलाएं विष्णु जी की सखियां बनती हैं और दीपदान
तथा मंगलदान करती हैं| इस माह में दीपदान करने से विष्णु जी की कृपा
प्राप्त होती है और जीवन में छाया अंधकार दूर होता है| व्यक्ति के भाग्य
में वृद्धि होती है|
पदमपुराण के अनुसार कार्तिक के महीने में शुद्ध घी अथवा तेल का दीपक
व्यक्ति को अपनी सामर्थ्यानुसार जलाना चाहिए| इस माह में जो व्यक्ति घी या
तेल का दीया जलाता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फलों की प्राप्ति होती
है| मंदिरों में और नदी के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती
हैं|
हमारे शास्त्रों में दुखों से मुक्ति दिलाने के लिए कई उपाय बताए हैं।
उनमें कार्तिक मास के स्नान, व्रत की अत्यंत महिमा बताई गई है। इस मास का
स्नान, व्रत लेने वालों को कई संयम, नियमों का पालन करना चाहिए तथा श्रद्धा
भक्तिपूर्वक भगवान श्रीहरि की आराधना करनी चाहिए।
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