नवरात्र आरंभ हो गया है और दुर्गा पंडालों की साज-सज्जा अपने अंतिम दौर में है। इसके साथ ही यहां की कुम्हारटोली के मूर्तिकार दुर्गा की प्रतिमाओं को आधुनिक रूप दे रहे हैं। समय बहुत कम है, इसलिए प्रतिमाओं पर उनकी कुशल और सधी हुई उंगलियां तेजी से चलने लगी हैं।
उत्तरी कोलकाता के कुम्हारटोली इलाके के मूर्तिकार मिट्टी और पुआल से रची जाने वाली इस प्राचीन कला के साथ कई प्रयोग भी कर रहे हैं, और बदलते युग की मांग को देखते हुए दुर्गा के साथ-साथ गणेश, कार्तिकेय, लक्ष्मी और सरस्वती की मूर्तियों को आधुनिक स्वरूप में ढाल रहे हैं।
सजीव सी लगने वाली इन मूर्तियों को मूर्तिकार रंगों, साड़ियों, गहनों से सजाने में लगे हुए हैं, ताकि उन्हें पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों और यहां तक की अन्य राज्यों में भी भेजा जा सके। विदेशों को जाने वाली मूर्तियां सप्ताह भर पहले ही भेजी जा चुकी हैं।
यहां की घुमावदार पेचीदा गलियों में बांस और कंक्रीट से बनी अपनी कार्यशालाओं में सदियों से मूर्ति निर्माण का कार्य करते चले आ रहे पाल समुदाय के मूर्तिकारों ने मूर्ति निर्माण में इस्तेमाल होने वाले परंपरागत रंगों, मूर्तियों की सज्जा में इस्तेमाल होने वाली अन्य सामग्रियों एवं मूर्ति की संरचना में काफी परिवर्तन किया है।
मूर्तिकार सोंटू डे ने बताया, "इस वर्ष सिरेमिक मूर्तियों की भारी मांग है। ये मूर्तियां चमकीली होती हैं जो रोशनी में चमक उठती हैं और मूर्ति को बहुत आकर्षक बनाती हैं। यह एक तरह का रंग है जिसे हम मिट्टी के ऊपर लगाते हैं।" मूर्ति निर्माण में अपने आधुनिक प्रयोगों के कारण गुमनामी के अंधेरों से निकलकर मूर्तिकार के रूप में प्रसिद्धि पाने वाले इन मूर्तिकारों ने इस वर्ष बॉलीवुड से प्रेरित मूर्तियां भी बनाई हैं।
बॉलीवुड के नए नायकों की भांति मूर्तियों के ग्राहक इन मूर्तिकारों से महिषासुर के तराशे हुए बदन और दुर्गा की आठ भुजाओं वाली मूर्ति बनाने की मांग की है। वहीं दुर्गा के परंपरागत घुंघराले बालों के बजाय अब रेशम जैसे नर्म कृत्रिम केशों ने इन मूर्तियों को एकदम नया स्वरूप प्रदान किया है।
डे ने बताया, "कुछ ग्राहकों ने कंधे तक बालों वाली मूर्तियों की भी मांग की है, जबकि कुछ ने भूरे बालों वाली दुर्गा मूर्तियों की मांग की है।" एक अन्य मूर्तिकार ने बताया, "ज्यादातर मूर्तियां तो परंपरागत स्वरूप वाली ही हैं, लेकिन कुछ ने टीवी के प्रभाव में एक छरहरी काया वाली मूर्तियों की मांग भी की है।"
आधुनिक मूर्तियों में इन तमाम बदलावों के बावजूद आज भी हानिकारक सीसायुक्त रंगों के उपयोग में कोई बदलाव नहीं आया है। कुम्हारटोली मूर्तिशिल्प संस्कृति समिति के प्रवक्ता बाबू पाल ने कहा, "सरकार ही जब सीसा रहित रंगों की कीमतें कम करने में असफल रही है, तो हम इसे कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं? हम ज्यादातर सीसायुक्त रंगों का ही इस्तेमाल करते हैं।"
मूर्तिशिल्पियों एवं विसर्जन के बाद जलीय जीवजगत के लिए बेहद हानिकारक इन रंगों का इस्तेमाल लंबे समय से पर्यावरणविदों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
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