नवरात्रि के दूसरे दिन करें माँ ब्रम्ह्चारिणी की पूजा





नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विधि विधान है| माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप उनके नाम अनुसार ही तपस्विनी है| देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों और सिद्धों को अकाट्य फल देने वाला है| भगवती दुर्गा का द्वितीय रूप माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा इस वर्ष 6 अक्टूबर दिन रविवार को होगी| इनका नाम ब्रह्मचारिणी इसलिए पड़ा क्योंकि इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इसी कारण ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं| कहा जाता है कि ब्रह्मचारिणी देवी, ज्ञान, वैराग्य, और ध्यान की देवी हैं। इनकी पूजा से विद्या के साथ साथ ताप, त्याग, और वैराग्य की प्राप्ति होती है। जब मानसपुत्रों से सृष्टि का विस्तार नहीं हो पाया था तो ब्रह्मा की यही शक्ति स्कंदमाता के रूप में आयी। स्त्री को इसी कारण सृष्टि का कारक माना जाता है। माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है, तथा जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों से छुटकारा मिलता है|







माँ ब्रह्मचारिणी की पूजन विधि-








भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों में से द्वितीय शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी का है| ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी| माँ ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं| माँ ब्रह्मचारिणी को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमाइस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में स्थित होता है| इस चक्र में अवस्थित साधक मां ब्रह्मचारिणी जी की कृपा और भक्ति को प्राप्त करता है| यह देवी शांत और निमग्न होकर तपस्या में लीन हैं| इनके मुख पर कठोर तपस्या के कारण अद्भुत तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोको को उजागर कर रहा है| माँ ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला है और बायें हाथ में कमण्डल होता है|





सर्वप्रथम हमने जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को कलश में आमत्रित किया है उनकी फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करते हैं | उन्हें दूध, दही,शक्कर, घी, व शहद से स्नान करायें व देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे हैं उसमें से एक अंश इन्हें भी अर्पण करते हैं| प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करते हैं| उसके पश्चात घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करते हैं | कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा करते हैं| इनकी पूजा के पश्चात मॉ ब्रह्मचारिणी की करते हैं|





माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय अपने हाथों में एक पुष्प लेकर माँ भगवती की ऊपर लिखे मंत्र के साथ प्रार्थना करते हैं | इसके पश्चात माँ को पंचामृत स्नान करते हैं| और फिर भांति भांति से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें देवी को अरूहूल का फूल या लाल रंग का एक विशेष फूल और कमल की माला पहनाये क्योंकि माँ को काफी पसंद है| अंत में इस मंत्र के साथ “आवाहनं न जानामि न जानामि वसर्जनं, पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरी..माँ ब्रम्ह्चारिणी से क्षमा प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए| इसके साथ ही देवी की जल्द प्रसन्नता हेतु भगवान् भोले शंकर जी की पूजा अवश्य करनी चाहिए| क्योंकि भोलेनाथ को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता ने महान व्रत किया था| 





सबसे अंत में ब्रह्मा जी के नाम से जल, फूल, अक्षत, सहित सभी सामग्री हाथ में लेकर “ॐ ब्रह्मणे नम:” कहते हुए सामग्री भूमि पर रखें और दोनों हाथ जोड़कर सभी देवी देवताओं को प्रणाम करते हैं|







देवी ब्रह्मचारिणी कथा -








माँ ब्रह्मचारिणी हिमालय और मैना की पुत्री हैं| इन्होंने देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर की ऐसी कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें मनोवांछित वरदान दिया था| जिसके फलस्वरूप यह देवी भगवान भोले नाथ की वामिनी अर्थात पत्नी बनी| जो व्यक्ति अध्यात्म और आत्मिक आनंद की कामना रखते हैं उन्हें इस देवी की पूजा से सहज यह सब प्राप्त होता है| माँ भगवती का द्वितीय स्वरुप योग साधक को साधना के केन्द्र के उस सूक्ष्मतम अंश से साक्षात्कार करा देता है जिसके पश्चात व्यक्ति की ऐन्द्रियां अपने नियंत्रण में रहती और साधक मोक्ष का भागी बनता है| इस देवी की प्रतिमा की पंचोपचार सहित पूजा करके जो साधक स्वाधिष्ठान चक्र में मन को स्थापित करता है उसकी साधना सफल हो जाती है और व्यक्ति की कुण्डलनी शक्ति जागृत हो जाती है| दुर्गा पूजा में नवरात्रे के नौ दिनों तक देवी धरती पर रहती हैं अत: यह साधना का अत्यंत सुन्दर और उत्तम समय होता है| इस समय जो व्यक्ति भक्ति भाव एवं श्रद्धा से दुर्गा पूजा के दूसरे दिन मॉ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं उन्हें सुख, आरोग्य की प्राप्ति होती है| देवी ब्रह्मचारिणी का भक्त जीवन में सदा शांत-चित्त और प्रसन्न रहता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं सताता है|







ब्रह्मचारिणी मंत्र-








या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।


नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।





दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।





देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।





माँ भगवती द्वितीय ब्रम्ह्चारिणी का ध्यान-





वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।


जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥


गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।





धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥


परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।


पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥







माँ भगवती ब्रम्ह्चारिणी का स्तोत्र पाठ -








तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।


ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥


शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।


शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥







माँ भगवती ब्रम्ह्चारिणी कवच-








त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।


अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥


पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥


षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।


अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।


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