विजय दशमी के दिन असत्य पर सत्य की जीत के प्रतीक स्वरूप लंकापति रावण का
पुतला जलाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश में कई ऐसी जगह भी हैं जहां दशहरा
के दिन रावण की पूजा की जाती है| सिर्फ यही नहीं उसके पुतले को चिंगारी भी
नहीं छुआई जाती। कानपुर, लखनऊ और बदायूं में बने मंदिरों में रावण की
मूर्तियां स्थापित है|
कानपुर में प्रयाग नारायण शिवाला स्थित कैलाश मंदिर परिसर में लंकाधिराज
रावण की मूर्ति स्थापित है। विजय दशमी पर यहां विधि विधान के साथ रावण की
पूजा की जाएगी। महाआरती के साथ रावण का फूलों से श्रृंगार किया जाएगा इसके
साथ ही महाभोग भी अर्पित किया जाएगा| पूरा दिन मंदिर का पट खुला रहेगा,
ताकि लोग दर्शन पूजन कर सकें।
इलाहाबाद में मात्र एक कमेटी की ओर से रावण की पूजा होती है। पितृपक्ष
एकादशी को श्री कटरा रामलीला कमेटी रावण की शोभायात्रा भारद्वाज आश्रम से
निकालती है।इसमें पूरी सजधज के साथ रावण की सेना चलती है। दशहरा के दिन
श्री दारागंज रामलीला कमेटी की ओर से रावण का पुतला दहन के बाद श्री कटरा
रामलीला कमेटी व दारागंज रामलीला कमेटी के लोग एक साथ अलोपीबाग मंदिर
पहुंचते हैं और ब्रह्म हत्या के दोष निवारण के लिए पूजा-अर्चना करते हैं।
लक्ष्मणपुरी यानी लखनऊ में लगता है रावण दरबार|
अगर आप इसे देखना चाहते हैं तो चौक स्थित चारों धाम मंदिर जा सकते हैं जहां
रावण दरबार स्थापित है। खास बात है कि इस दरबार में श्रीराम के लंका विजय
की पूरी दास्तान प्रतिमाएं बयान करती हैं। चौक के रानीकटरा में 1912 में
बने चारों धाम मंदिर परिसर में रावण दरबार बना है। जिसमें दशानन सबसे ऊंचे
सिंहासन पर विराजमान है|
रावण का किरदार निभाने वाले विष्णु त्रिपाठी 33 वर्षो से दशहरे के दिन गाय
के गोबर से पहले घर में दश शीश बनाकर लड्डू का भोग लगाते हैं। फिर रानीकटरा
जाकर रावण दरबार में रावण को तिलक करके प्रसाद चढ़ाते हैं। पूजन के बाद वह
चौक के श्री पब्लिक बाल रामलीला ग्राउंड लोहिया पार्क में होने वाली
रामलीला में रावण का किरदार निभाते हैं। बदायूं के अलावा पश्चिमी उत्तर
प्रदेश के किसी जिले में रावण की पूजा नहीं की जाती। बदायूं में रावण का
मंदिर है।
साहूकारा इलाके में इस मंदिर का निर्माण जमींदार पं. बलदेव प्रसाद शर्मा ने
1952 में कराया था। दशहरा के दिन रावण के खानदानी शखधार परिवार के लोग शोक
मनाते हैं। बरेली में सुभाषनगर निवासी रमेश चंद्र शुक्ला रावण के इतने
बड़े भक्त हैं कि उन्होंने 'चालीसा' ही गढ़ दी| इटावा के जसवंत नगर के लोग
भी दशहरा के दिन रावण की पूजा करते हैं। रावण को न फूंकने की परंपरा कहां
से आई, अयोध्या शोध संस्थान के लिए कौतूहल का विषय है|
संस्थान के डायरेक्टर डॉ. वाईपी सिंह तीन वर्षो से यहां की संपूर्ण रामलीला
पर शोध कार्य करने में जुटे हैं। दशहरा के दिन वध के बाद पुतला नीचे गिरता
है तो भीड़ पुतले की बांस की खपच्ची, कपड़े आदि नोंच-नोंच कर घर ले जाती
हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बड़ागांव में एक भव्य प्राचीन
मंदिर है। दंतकथाओं के मुताबिक उसका निर्माण रावण ने कराया था। यहां के लोग
रावण के प्रति श्रद्धा रखते हैं। रामलीला का आयोजन यहां नहीं होता। मेरठ
में रावण की ससुराल मानी जाती है, लेकिन यहां भी दशहरे पर रावण की पूजा
नहीं होती।
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