छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में आदिवासी मुंडा समाज में एक अजीबोगरीब परंपरा आज भी कायम है। यहां ग्रह-दोष मिटाने के लिए बच्चों का विवाह कुत्ते के बच्चे के साथ किया जाता है। मकर संक्रांति के अगले दिन बुधवार को पारंपारिक गीतों के बीच दुधमुंहे बच्चे सहित पांच साल के आठ बच्चों की शादी धूमधाम से की गई। बच्चों के साथ दूल्हे-दुल्हन के रूप में कुत्ते के बच्चे बैठे थे। खुशनुमा माहौल में समाज के लोग गीतों पर थिरक भी रहे थे। ऐसा दृश्य बालको नगर के समीप बेलगरी नाला बस्ती के उड़िया मोहल्ले में दिनभर देखने को मिला।
बताया जाता है कि समाज में मान्यता है कि दुधमुंहे बच्चों के ऊपरी दांत पहले निकलने पर उसे ग्रहदोष लग जाता है। इसलिए पांच वर्ष से पहले ऐसे बच्चों की शादी इस जानवर से की जाती है। शादी भी पूरे रीति-रिवाज व धूमधाम से होती है। बच्चों को दूल्हा-दुल्हन के रूप में सजाने के साथ कुत्ते के बच्चे को भी सजाया जाता है। उसे माला पहनाई जाती है। बारात निकालकर गांव के आखिरी छोर में बच्चों की शादी की जाती है। बड़े-बुजुर्ग पूजा-अर्चना के साथ ही बच्चों व कुत्ते को हल्दी भी लगाते हैं। इसके बाद सामान्य शादी की तरह मांग भरी जाती है, आशीर्वाद लिया जाता है। शादी संपन्न होते ही समाज की महिलाएं पारंपरिक गीत गाते हुए झूमते-नाचते दूल्हा-दुल्हन को घर ले जाती हैं, जहां उनके पैर धुलाकर घर प्रवेश कराया जाता है। पप्पी को खाना खिलाया जाता है। इसके बाद रातभर जश्न मनाया जाता है।
दूल्हा-दुल्हन की देखरेख की जिम्मेदारी बड़े होने तक समाज के लोग ही निभाते हैं। समाज के लोगों के मुताबिक इस परंपरा को निभाने से बच्चों पर से सभी प्रकार के ग्रहदोष मिट जाते हैं। समाज की उम्रदराज खेदिन बाई ने बताया कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। पूर्वजों के बताए अनुसार जिन बच्चों के ऊपर के दांत पहले निकलते हैं उनकी शादी कुत्ते से कराना अनिवार्य होता है। यहां के कई बड़े-बुजुर्गो की भी बचपन में ऐसी शादी हो चुकी है। बच्चों के परिजन भी रस्म अदा करते हुए कुत्ते का स्वागत करते हैं। उन्हें उपहार में रुपये भेंट किए जाते हैं। उनके भी हाथ-पैर व माथे में हल्दी का लेप किया जाता है। आखिर में दूल्हा कुत्ते का हाथ पकड़कर दुल्हन बच्ची के माथे में सिंदूर लगाया जाता है। वहीं दूल्हा बने बच्चे द्वारा दुल्हन कुत्ते के माथे में सिंदूर लगाकर शादी की रस्म पूरी कराई जाती है।
कोरबा जिले की सावित्री मुंडा ने बताया कि समाज में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है। ऐसा न करने पर युवावस्था में शादी करने वाले जोड़ों को ग्रहदोष घेर लेता है। परिवार के साथ अनिष्ट होने लगता है। यहां तक कि जोड़े में से किसी एक की मौत भी संभावित होती है। कुत्ते से शादी होने पर भविष्य में शादी करने वाले जोड़े सुख-समृद्धि में रहते हैं। मुंडा समाज में परंपरागत रिवाज के अनुसार मकर संक्रांति के अगले दिन ही बच्चों का कुत्ते के बच्चे से शादी का कार्यक्रम चलता है। दिनभर गाने व नाचने का दौर चलता है। वहीं बस्ती में विशेष व्यंजन बनाकर एक-दूसरे को बांटे जाते हैं।
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