...इन्हीं माँ के आशीर्वाद से हुई थी जोधपुर और बीकानेर की स्थापना











राजस्थान की धरती पर अनेक सांस्कृतिक रंग रह पग पर नजर आते हैं। वीर सपूतों की इस धरती पर धर्म और आध्यात्म के भी कई रंग दिखाई देते हैं। धर्म-यात्रा सीरीज में आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां खुद मां जगत जननी अपने इष्टदेव की पूजा अर्चना किया करती थीं। इन्ही माँ के आशीर्वाद से जोधपुर और बीकानेर जैसे राज्य की स्थापना हुई| इस माँ के दर्शन करने केवल राजस्थान से ही नहीं बल्कि देश विदेश से भक्त आते हैं| अब आप सोंच रहे होंगे कि आखिर कौन सा यह मंदिर है तो आपको बता दें कि यह है करनी माता का मंदिर जिसे चूहे वाली माता का मंदिर भी कहा जाता है| चूहे वाली माता का मंदिर इस लिए कहा जाता है क्योंकि इस मंदिर में एक-दो नहीं बल्कि हजारों की संख्या में चूहे मौजूद हैं खासकर आरती के वक्त तो चूहों से पूरा का पूरा मंदिर भरा रहता है। माता के दर्शन करने वालों के पैरों पर और शरीर पर भी चूहे चढ़ जाते है लेकिन फिर भी लोग चूहों से नाराज नहीं होते। इसे माता का आशीर्वाद और कृपा मानकर प्रसन्न होते हैं।





करनी माता के दर्शन करने के लिए जो भी भक्त आते हैं वह इन चूहों के खाने के लिए कुछ न कुछ जरूर लाते हैं। माता के मंदिर में सुबह की पूजा और शाम की आरती के समय चूहों की फौज देखने लायक होती है। मंदिर में आपको बड़ी ही सावधानी से अपना पैर रखना होगा अन्यथा एक दो चूहे पैरों से दबकर मर भी सकते हैं। चूहों का दबकर मर जाना यहां अपशकुन समझा जाता है। ये माता मंदिर बीकानेर से लगभग 30 किलोमीटर दूर जोधपुर रोड पर गांव देशनोक की सीमा में स्थित है। 





मान्यता है कि करनी माता का जन्म एक चारण परिवार में हुआ था। बाल्यकाल में ही इन्होंने अपने चमत्कारों से लोगों का कल्याण करना शुरू कर दिया जिससे लोगों ने इन्हें करनी माता कहना शुरू कर दिया। माता एक गुफा में रह अपने इष्ट देव की आराधना किया करती थी। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्थित है। माता के ज्योर्लिलीन होने के बाद इस स्थान पर मंदिर का निर्माण कर उसमें मूर्ति स्थापित की गयी। मंदिर में मौजूद चूहों के विषय में किंवदंती है कि माता के सौतेल पुत्र की मृत्यु कुएं में गिरने से हो गयी। 





माता ने यमराज को आदेश दिया कि उनके पुत्र को जीवित कर दे, यमराज ने माता के पुत्र को जीवित तो कर दिया लेकिन वह चूहा बन गया। इसलिए माना जाता है कि चूहे माता के पुत्र के समान हैं। माता के वंशज मृत्यु के बाद चूहा बनाकर मंदिर में पहुंच जाते हैं। जैसे अमरनाथ मंदिर में कबूतरों को दिखना शुभ माना जाता है ठीक इसी तरह करनी माता मंदिर में चूहों की फौज में सफेद चूहों का दिख जाना बड़ा ही शुभ संयोग माना जाता है। मान्यता है कि सफेद चूहा दिख जाने से मांगी गयी मुराद पूरी होती है। मंदिर परिसर में प्रसाद भी पहले चूहे खाते हैं फिर वह भक्तों को मिलता हैं|





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