लावारिस बच्चों को अपना आंचल देकर मां की कमी पूरी करती है शिरीन







बोझ समझकर जिन बच्चों को उनके माता-पिता ने छोड़ दिया है, एक ग्रामीण महिला उनकी 'मां' बनकर जन्म देने वाली मां से कहीं ज्यादा लाड़-प्यार देती है। वह नि:स्वार्थ भाव से लावारिस और बेसहारा बच्चों को अपना आंचल देकर उनके जीवन में मां की कमी पूरी करती है। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के पडरौना कस्बे के निकट परसौनी कला गांव में रहने वाली 63 वर्षीया शिरीन बसुमता लावारिस हालत में मिले 29 बच्चों को अपने घर लाकर उनका पालन-पोषण कर रही हैं। बिना भेदभाव के सभी बच्चों को शिरीन का बराबर प्यार मिलता है। 





शिरीन ने बताया, "लावारिस और बेसहारा बच्चों की देखभाल करना मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गया है। मुझे लगता है, जैसे ईश्वर ने मुझे इसी काम के लिए दुनिया में भेजा है।" उन्होंने कहा, "मैं इसे सौभाग्य समझती हूं कि ईश्वर ने मुझे इस काम के लिए चुना। मैंने करीब 13 साल पहले यह नेक काम शुरू किया था।"





शिरीन के मुताबिक, 5 नवंबर 2001 को गांव से थोड़ी दूर पर एक नाले के पास उन्हें एक नवजात बच्ची मिली। उसकी हालत बहुत खराब थी। वह उसे घर ले आईं और उसका इलाज करवाया। डॉक्टर की कड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार उस बच्ची की जान बच सकी।





शिरीन कहती हैं, "मैंने उस बच्ची का नाम महिमा रखा। उस दिन के बाद से मैंने तय कर लिया कि अब मैं उन लावारिस बच्चों की मां बनकर उन्हें लाड़-प्यार दूंगी जिन्हें जन्म देने वाली मां किसी मजबूरी के चलते नाले, झाड़ियों, बाग, रेलवे और बस स्टेशन के आस-पास छोड़ जाती हैं।"





महिमा के बाद एक-एक करके सिरीन को अब तक कुल 29 बच्चे मिले। इनसे से कई उन्हें लावारिस हालत में मिले और कुछ को लोगों ने उन्हें सौंपा। शिरीन को इस काम में उनके परिवार के अन्य सदस्य भी पूरी मदद करते हैं। उनके पुत्र जयवंत बसमुता कहते हैं कि वह अपनी मां से प्रेरणा लेकर इन बच्चों की सेवा करते हैं। इस काम में बहुत खुशी और संतोष मिलता है।





इन बच्चों के खाने-पीने और कपड़ों के इंतजाम में शिरीन की गांव के लोगों के साथ कुछ सामाजिक संगठन भी मदद करते हैं। जयवंत कहते हैं, "गांव के लोग अक्सर हमें अनाज, सब्जियां और दूध आदि देकर मदद करते हैं जिससे हमें बच्चों के खान-पान की व्यवस्था करने में कुछ आसानी हो जाती है। कुछ सामाजिक संगठन के लोग हमारे इस नेक काम में रुपये के जरिए मदद कर देते हैं।"शिरीन ने पांच साल से ऊपर के बच्चों को घर के निकट स्थित एक मिशनरी स्कूल में दाखिला दिलवाया है। वह चाहती हैं कि ये बच्चे पढ़-लिख कर नेक इंसान बनें और जिंदगी में कुछ करके दिखाएं।





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