बुद्ध पूर्णिमा कल, इस तरह करें भगवान बुद्ध की पूजा



बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है।
इसे बुद्ध जयन्ती के नाम से भी जाना जाता है| बुद्ध जयन्ती वैशाख पूर्णिमा
को मनाया जाता हैं। इस बार बुद्ध पूर्णिमा 14 मई को मनाई जा रही है|
पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का स्वर्गारोहण समारोह भी मनाया जाता है।
मान्यता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। आज
बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी
धूमधाम से मनाते हैं।



बुद्द पूर्णिमा का महत्व-



धार्मिक ग्रंथों के अनुसार महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का तेइसवां अवतार
माना गया है| इस दिन लोग व्रत-उपवास रखते हैं| इस दिन बौद्ध मतावलंबी
श्वेत वस्त्र धारण करते हैं तथा बौद्ध विहारों व मठों में एकत्रित होकर
सामूहिक उपासना करते हैं व दान दिया जाता है| बौद्ध और हिंदू दोनों ही
धर्मो के लोग बुद्ध पूर्णिमा को बहुत श्रद्धा के साथ मनाते हैं| बुद्ध
पूर्णिमा का पर्व बुद्ध के आदर्शों व धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा
देता है| संपूर्ण विश्व में मनाया जाने वाला यह पर्व सभी को शांति का संदेश
देता है|



दुनियाभर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएँ करते हैं
तथा बोधिवृक्ष की पूजा करते हैं उसकी शाखाओं पर रंगीन ध्वज सजाए जाते हैं
वृक्ष पर दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है और उसके पास दीपक जलाए जाते है|
श्रीलंका में इस पर्व को 'वेसाक' पर्व के नाम से जाना जाता है| इस दिन दीपक
जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है| बौद्ध धर्म के
धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है| इस दिन किए गए अच्छे कार्यों से
पुण्य की प्राप्ति होती है|



महात्मा बुद्ध की कथा-



गौतम बुद्ध का मूल नाम 'सिद्धार्थ' था इन्हें ‘बुद्ध', 'महात्मा बुद्ध' आदि
नामों से भी जाना जाता है| यह बौद्ध धर्म के संस्थापक हुए. बौद्ध धर्म
भारत की श्रमण परंपरा से निकला धर्म और दर्शन है तथा संपूर्ण विश्व के चार
बड़े धर्मों में से एक है| गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन और माता जी
का नाम महामाया था| राज घराने में जन्में सिद्धार्थ के विषय में इनके पिता
राजा शुद्धोधन को विद्वानों द्वारा बताया गया था कि युवराज सिद्धार्थ या तो
एक महान राजा बनेंगे, या एक महान साधु बनेगें साथ ही यह भी भविष्यवाणी की
कि युवराज सिद्धार्थ को किसी भी प्रकार के दुख को न देखने दिया जाए इनका
कभी भी बूढे, रोगी, मृतक और सन्यासी से सामना न हो तभी यह राज्य कर पाएंगे|



इस भविष्यवाणी को सुनकर राजा शुद्धोधन ने अपनी सामर्थ्य की हद तक सिद्धार्थ
को दुख से दूर रखने की कोशिश की तथा सांसारिक बंधन में पूर्ण रूप से
बांधने के लिए इनका विवाह यशोधरा जी के साथ कर दिया गया| परंतु जब
सिद्धार्थ ने एक बार एक वृद्ध विकलांग व्यक्ति, एक रोगी, एक पर्थिव शरीर,
और एक साधु समेत इन चार दृश्यों को एक साथ देखा तो उनके मन में जीवन के
सत्य को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई और एक रात्रि सिद्धार्थ अपना सब कुछ
छोड़कर सत्य की खोज में निकल पडे व एक साधु का जीवन अपना लिया. उन्होंने
कठिन तप किया तथा अंत में महावरिक्ष के नीचे आठ दिन तक स्माधिवस्था में
वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई यहीं से सिद्धार्थ
गौतम बुद्ध कहलाए|



बुद्ध पूर्णिमा को बैशाख माह का अंतिम स्नान-



वैसे तो प्रत्येक माह की पूर्णिमा श्री हरि विष्णु भगवान को समर्पित होती
है। शास्त्रों में पूर्णिमा को तीर्थ स्थलों में गंगा स्नान का विशेष महत्व
बताया गया है। बैशाख पूर्णिमा का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि इस
पूर्णिमा को भाष्कर देव अपनी उच्च राशि मेष में होते हैं और चंद्रमा भी
उच्च राशि तुला में। संयोगवश इस बार पूर्णिमा को स्वाती नक्षत्र का योग भी
है।



शास्त्रों में पूरे बैशाख माह में गंगा स्नान का महत्व बताया गया है।
शास्त्रों में यह भी वर्णित है कि पूर्णिमा का स्नान करने से पूरे बैशाख
माह के स्नान के बराबर पुण्य मिलता है।






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