कृष्ण ने नहीं ऋषि दुर्वासा के वरदान से बची थी द्रोपदी की लाज!





महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत जैसा अन्य कोई ग्रंथ नहीं है। यह ग्रंथ बहुत ही विचित्र और रोचक है। विद्वानों ने इसे पांचवां वेद भी कहा है। महाभारत में अनेक पात्र हैं, लेकिन एक पात्र है द्रोपदी का| महाभारत में इस घटना उल्लेख है कि दुःशासन ने अपने अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण करवाया था। लेकिन श्रीकृष्ण ने स्वयं प्रकट होकर द्रौपदी के सम्मान की रक्षा की।





इस घटना से जुड़ी एक और कहानी का उल्लेख मिलता है जो ऋषि दुर्वासा द्वारा द्रौपदी को प्राप्त वरदान से संबंधित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस वरदान की वजह से ही द्रौपदी का चीरहरण होने से बचा था। शिव पुराण के अनुसार एक बार भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले ऋषि दुर्वासा नदी में स्नान कर रहे थे, नदी के तेज बहाव और अनियंत्रित लहरों की वजह से दुर्वासा के कपड़े बह गए।





ऋषि दुर्वासा को परेशान देख, उसी नदी के तट पर बैठी द्रौपदी ने अपने वस्त्र को फाड़कर कुछ टुकड़ा दुर्वासा ऋषि को दे दिया। द्रौपदी के इस व्यवहार से दुर्वासा ऋषि अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें यह वरदान दिया कि जब भी संकट के समय उन्हें वस्त्रों की आवश्यकता होगी तब उनके वस्त्र अनंत हो जाएंगे। दुर्वासा ऋषि द्वारा दिए गए इसी वरदान की वजह से भरी सभा में जब दु:शासन ने द्रौपदी का चीर हरण करने का प्रयास किया तब द्रौपदी की साड़ी के कई टुकड़े हो जाने की वजह से उनके सम्मान की रक्षा हुई।


Post a Comment

أحدث أقدم