16 दिसंबर को भारत की लौह महिला कही जाने वाली इंदिरा गांधी ने देश की मुक्ति वाहिनी भारतीय सेना की जीत से पाकिस्तान के कब्जे से पूर्वी पाकिस्तान को मुक्त करा दिया था। इस पूरे युद्ध ,में करीब 90 हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों को भारतीय सेना ने आत्मसमर्पण करने के लिये मजबूर कर दिया। 1971 की लड़ाई के बाद 16 दिसंबर की तारीख इतिहास में अमर हो गई| साथ ही भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी एक मजबूत इरादों वाली महिला के तौर पर पूरे विश्व में जाना जाने लगा।
1971 का 16 दिसम्बर जहाँ भारतीय सेना और इंदिरा गांधी को तारीख में अमर कर गया| वही 2012 का 16 दिसंबर भारत में महिलाओं के प्रति समाज की सोच को बदलने वाला साबित हुआ। 16 दिसंबर 2012 को देश की अति सुरक्षित मानी जाने वाली राजधानी दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती एक बस में मानवता को शर्मशार करने वाला वो चेहरा सामने आया जिसने हमें ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि हम किस समाज में रह रहे है और कैसे लोग हमारे इर्द गिर्द विचरते है।
दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती एक बस में कुछ दरिंदो ने एक लड़की के साथ वो क्रूकृत्य किया जिसने हमारे समाज को सोचने और बदलने पर मजबूर कर दिया। उस घटना ने जहाँ देश को झकझोर दिया वहीँ, देश की उस सोच को बदलने पर भी मजबूर किया कि हम जिस समाज में रहते है उस समाज की पुरुष मानसिकता को बदलने की जरुरत है। देश में निर्भया काण्ड के तौर पर मशहूर हुये इस काण्ड ने बलात्कारियों और महिलाओं के प्रति गन्दी सोच रखने वालों के लिये एक सख्त कानून बनाये जाने की जरुरत को उजागर कर दिया।
निर्भया काण्ड ने देश के युवाओ में उबाल ला दिया था, देश के सभी प्रांतो और शहरो में इस काण्ड को लेकर आक्रोश था| वहीँ, लोग बाल्त्कारियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दिलाने के लिये सड़कों पर थे। आधुनिक भारत में ऐसा दूसरी बार हुआ था जब किसी मुद्दे को लेकर युवा और अनुभवी लोग कंधे से कंधा मिलाकर आंदोलन और विरोध दोनों एक साथ कर रहे थे। अन्ना आंदोलन जो भ्रष्टाचार को लेकर एक मजबूत लोकपाल बिल लाने के लिये शुरू हुआ था जिसको लेकर देश कि राजधानी दिल्ली से लेकर दूर सिक्किम में भी आंदोलन हुआ| ऐसा ही आंदोलन 16 दिसंबर की घटना के बाद हुआ जिसने बलात्कारियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए हुआ।
इन्ही आंदोलन की आग कहे या लोगो का गुस्सा आज दिल्ली ने आम आदमी पार्टी को इतना मजबूत कर दिया की आज वो दिल्ली में सरकार बनाने की दौड़ में शामिल हो गई। लोगो के गुस्से ने बलात्कार के क़ानून में भी संशोधनकरा दिया जिसे उसी लड़की को समर्पित किया गया। आज देश में महिला अधिकारों के लिए जमकर बहस हो रही है। निर्भया काण्ड ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान दिया। सरकार ने दिवंगत न्यायमूर्ति जे एस वर्मा के नेतृतव में जिस कानून की नीव रखी उस क़ानून का असर भी देश में दिखाई पड़ने लगा है| आज बड़े से बड़ा आदमी भी उस कानून के चंगुल में फंस कर कराह रहा है जिसका ताज़ा तरीन मामला है अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बुद्धिजीवियों की जमात में शामिल देश के धुरंधर पत्रकार तरुण तेजपाल प्रकरण| वहीँ, कथा वाचक आसाराम बापू और उसके बेटे नारायण स्वामी का कानून के फंदे में फसना।
इन सबके बीच एक बात बुरी हुई कि देश में बलात्कार की घटनाओं में बढ़ोतरी दर्ज की गई। राजधानी दिल्ली में 2013 में 1121 मामले दर्ज हुये जो बीते वर्ष से दोगुने थे। वहीँ, देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का हाल भी बुरा रहा| नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार उत्तर प्रदेश में महिलायें और प्रांतो से ज्यादा असुरक्षित है। 2012 में प्रदेश में 23 हज़ार 569 मामले दर्ज हुये जो करीब देश में दर्ज मामलों का 10 % है। वही पश्चिम बंगाल जो महिला सशक्तिकरण वाला प्रदेश माना जाता है वहाँ सबसे ज्यादा 30 हज़ार 942 और आंध्र प्रदेश में 28 हज़ार 171 मामले दर्ज हुये। देश के इन तीन बड़े प्रांतों में ही महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा मामले आये। वहीँ, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 2012 में 5959 मामले दर्ज हुये थे। दिल्ली पुलिस का बलात्कार मामलों में दर्ज हो रहे केस में बढ़ोतरी पर मानना है कि अब लड़कियों की ऐसे मामलों में शर्मसार होने के दिन खत्म हो गये महिलाओं ने झिझक छोड़कर पुलिस थानो का रुख कर लिया है।
देश में बढ़ रहे मामलों में भले ही समाज और सरकार को नहीं जगाया लेकिन देश की बेटियों को मजबूर से मजबूत बना दिया और बेटियां अपने साथ हुये कुकर्म को दुनिया के सामने लाने लगी। आज देश की महिलाओं ने समाज के दरिंदो को सबक सिखाने के लिये उसी कानून का सहारा लेना मुनासिब समझा जो उनकी दोस्त सहेली निर्भया मर कर उन्हें दे गई। महिलाओं ने आगे बढ़कर सिस्टम और सरकार के प्रति अपना गुस्सा भी दिखाया जिसका सबसे बड़ा परिणाम है दिल्ली में शीला की सल्तनत की विदाई| दिल्ली कि जनता ने अपनी गुस्से को उस पार्टी के हक़ में जाहिर कर दिया जो उसी आंदोलन के बाद निकली थी।
आज भी महिलाओं के प्रति समाज को अपनी सोच में बदलाव लाने की जरुरत है नहीं तो आने वाले समय में समाज को ऐसे असामाजिक तत्तवों से बचाने के लिये किसी इंदिरा गांधी जैसी मजबूत इरादों वाली महिला या ऐसी सैकड़ो निर्भयाओं की जरुरत पड़ेगी जो इस कुत्सित सोच को बदलने के लिये सड़कों पर निकलेंगी।
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