जानिए रावण को कैसे मिली थी सोने की लंका





रामायण के अनुसार, लंकापति रावण के पास सोने की लंका थी। क्या आपको पता है रावण को सोने की लंका कैसे मिली थी। यदि नहीं तो आज हम आपको बताते हैं कि रावण को सोने की लंका कैसे मिली थी। शास्त्रों के अनुसार, एक दिन कुबेर महान समृद्धि से युक्त हो पिता के साथ बैठे थे। रावण आदि ने जब उनका वह वैभव देखा तो रावण के मन में भी कुबेर की तरह समृद्ध बनने की चाह पैदा हुई। तब रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा ये दोनों तपस्या में लगे हुए अपने भाइयों की प्रसन्न चित्त से सेवा करते थे।





एक हजार वर्ष पूर्व होने पर रावण ने अपने मस्तक काट-काटकर अग्रि में आहूति दे दी। उसके इस अद्भुत कर्म से ब्रह्मजी बहुत संतुष्ट हुए उन्होंने स्वयं जाकर उन सबको तपस्या करने से रोका। सबको पृथक-पृथक वरदान का लोभ दिखाते हुए कहा पुत्रों मैं तुम सब प्रसन्न हूं। वर मांगों और तप से निवृत हो जाओ। एक अमरत्व छोड़कर जो जिसकी इच्छा हो मांग लो। तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी। तुमने महत्वपूर्ण पद प्राप्त करने की इ'छा से जिन सिरों की आहूति दी है वे सब तुम्हारे शरीर में जुड़ जाएंगे। तुम इ'छानुसार रूप धारण कर सकोगे। रावण ने कहा हम युद्ध में शत्रुओं पर विजयी होंगे-इसमें कुछ भी संदेह नहीं है। गंधर्व, देवता, असुर, यक्ष, राक्षस, सर्प, किन्नर और भूतों से मेरी कभी पराजय न हो। तुमने जिन लोगों का नाम लिया। इनमें से किसी से भी तुम्हे भय नहीं होगा।केवल मनुष्य से हो सकता है।





उनके ऐसा कहने पर रावण बहुत प्रसन्न हुआ। उसने सोचा-मनुष्य मेरा क्या कर लेंगे, मैं तो उनका भक्षण करने वाला हूं। इसके बाद ब्रह्मजी ने कुंभकर्ण से वरदान मांगने को कहा। उसकी बुद्धि मोह से ग्रस्त थी। इसलिए उसने अधिक कालतक नींद लेने का वरदान मांगा। विभीषण ने बोला मेरे मन में कोई पाप विचार न उठे तथा बिना सीखे ही मेरे हृदय में ब्रम्हास्त्र के प्रयोग विधि स्फुरित हो जाए। राक्षस योनि में जन्म लेकर भी तुम्हारा मन अधर्म में नहीं लग रहा है। इसलिए तुम्हें अमर होने का भी वर दे रहा हूं। इस तरह वरदान प्राप्त कर लेने पर रावण ने सबसे पहले लंका पर ही चढ़ाई की और कुबेर से युद्ध जीतकर लंका को कुबेर से बाहर दिया।


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