होली हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है| होली शीत ऋतु के उपरांत बंसत के आगमन, चारों और रंग- बिरंगे फूलों का खिलना होली आने की ओर इशारा करता है| होली का त्योहर प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है| होली पर्व के आने की सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है| होलाष्टक को होली पर्व की सूचना लेकर आने वाला एक हरकारा कहा जा सकता है| “होलाष्टक” शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है होली के आठ दिन।
इसकी शुरुआत होलिका दहन के सात दिन पहले और होली खेले जाने वाले दिन के आठ दिन पहले होती है और धुलेडी के दिन से इसका समापन हो जाता है। यानी कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू होकर चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तक होलाष्टक रहता है। अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है। इसी दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती है।
इस वर्ष होलाष्टक 16 मार्च से प्रारम्भ होंगे। इन आठ दिनों में क्रमश: अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध एवं चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए माने जाते हैं, जिसकी वजह से इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
होलाष्टक के विषय में यह माना जाता है कि जब भगवान भोले नाथ ने क्रोध में आकर काम देव को भस्म कर दिया था, तो उस दिन से होलाष्टक की शुरुआत हुई थी| वहीँ, पौराणिक दृष्टि से प्रह्लाद का अधिग्रहण होने के कारण यह समय अशुभ माना गया है लेकिन पर्यावरण एवं भौतिक दृष्टि से पूर्णिमा से आठ दिन पूर्व मनुष्य का मस्तिष्क अनेक सुखद-दुखद आशंकाओं से ग्रसित हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप वह चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को अष्टग्रहों की अशुभ प्रभाव से क्षीण होने पर अपने मनोभावों की अभिव्यक्ति रंग, गुलाल से प्रदर्शित करता है।
होलिका पूजन करने के लिये होली से आंठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी खास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है| जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है| जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है| होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है|
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