बिहार के नालंदा जिले के मुहाने नदी में आया उफान भले ही अब कुछ शांत हो
गया हो परंतु बाढ़ के कारण आई मुसिबतें कम नहीं हो रही हैं। बाढ़ की तबाही
से बेचैन लोग किसी तरह जान बचाकर अभी भी ऊंचे स्थानों पर शरण लिए हुए हैं।
ऐसे लोग अपनी जिंदगी को तो सुरक्षित कर रहे हैं परंतु भूख की मार से बेजार
लोगों को मुट्ठीभर अनाज के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ रही है। आशियाना के
नाम पर ऐसे लोगों को ढमकोल की चारदीवारी और पालिथिन से बने छत सर छिपाने के
लिए कम पड़ रहे हैं।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जनपद नालंदा में इस वर्ष
बाढ़ ने अभूतपूर्व कहर बरपाया है। नालंदा में इस वर्ष मुहाने, नोकइन,
पंचाने और गोइठवा जैसी क्षेत्रीय नदियों ने जमकर कहर बरपाया है। नालंदा
जिले के परबलपुर प्रखंड के खरजम्मा मठ में मुहाने नदी की धार तो कहर बरपा
कर वापस लौट आई परंतु आज भी इस गांव के लोग चार फुट पानी में अपनी जिंदगी
की गाड़ी खींच रहे हैं। बाढ़ का पानी इस गांव के महादलित परिवार की तीन
दर्जन झोपड़ियां बहा ले गया, तब से अब तक इन परिवारों की जिंदगी खानाबदोश
वाली होकर रह गई है।
गांव की रहने वाली सितबतिया देवी को यह भी पता नहीं कि बिहार के
मुख्यमंत्री पद से नीतीश कुमार इस्तीफा दे दिए हैं। यही कारण है कि उसकी
शिकायत अभी भी नीतीश से ही है। वह कहती है कि मुहाने नदी के तट पर बसे इस
गांव में तो नदी ने सब कुछ उजाड़ दिया है। हम लोग तटबंध पर ढमकोल (ताड़ के
पेड़ के पत्तों) से झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। वह कहती हैं कि अबोध बच्चों
के लिए न दूध मिल पा रहा है न ही बुजुर्गों के लिए दवा उपलब्ध हो पा रही
है, परंतु इसे देखने वाला कोई नहीं। सब नेता वोट मांगने आते हैं परंतु इस
समय कोई नहीं आ रहा।
इधर, गांव के लोग जिला प्रशासन के उस दावे को भी खोखला बता रहे हैं कि राहत
सामग्री बांटी जा रही है। गौढापुर और प्राणचक गांव के भी महादलित परिवार
के लोग अभी ऊंचे स्थानों पर शरण लिए हुए हैं। इन लोगों का कहना है कि बाढ़
में खेत डूबे रहने के कारण काम भी नहीं मिल पा रहा है। चंडी प्रखंड के
मानपुर गांव के लोग गौढापुर के प्राथमिक विद्यालय में शरण लिए हुए हैं।
यहां कोई सुविधा नहीं। इधर, दरवेशपुर और गोनकुरा गांव के आधा से ज्यादा
खेतों में लगी फसल बाढ़ के पानी में डूबकर बर्बाद हो गई है। बची-खुची फसल
बचाने के लिए लोग अपनी जिंदगी को दांव पर लगाकर तटबंध को सुरक्षित रखने के
लिए जीतोड़ प्रयास कर रहे हैं। लोग रतजगा कर रहे हैं। इन गांवों का संपर्क
प्रखंड मुख्यालय से कट गया है।
गोनकुरा गांव निवासी रामधनी कहते हैं कि खेत में लगी फसल तो बर्बाद हो गई
है, परंतु अब आशियाना भी न बह जाए, इसका जतन किया जा रहा है। वह कहते हैं
कि उन्होंने इस वर्ष धान की रोपनी बड़े क्षेत्र में की थी। अगले वर्ष उनका
बेटा मैट्रिक पास कर लेगा। उसके कॉलेज में नामांकन के लिए पैसे के प्रबंध
के लिए ज्यादा क्षेत्र में खेती की थी कि अच्छे कॉलेज में नामांकन करा
दूंगा परंतु भगवान को यह मंजूर नहीं लगता। सरकार अभी बाढ़ पीड़ितों की सूची
बनाने में जुटी है। परबलपुर प्रखंड के प्रखंड विकास अधिकारी पंकज कुमार
कहते हैं कि बाढ़ पीड़ितों की सूची तैयार की जा रही है। राहत सामग्री
बांटने के विषय में पूछने पर कहते हैं कि कई क्षेत्रों में राहत साम्रगी
भेजी गई है।
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष बाढ़ का सबसे अधिक प्रभाव नालंदा जिले में देखने
को मिला है। नालंदा के 15 प्रखंडों में बाढ़ का पानी तबाही मचा रहा है।
जिले के 400 से ज्यादा गांवों की करीब साढ़े सात लाख आबादी प्रभावित हुई
है।
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